Book Title: Shilki Nav Badh
Author(s): Shreechand Rampuriya, 
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

View full book text
Previous | Next

Page 232
________________ परिशिष्ट-क : कथा और दृष्टान्त रन का दृष्टान्त ' (मनुष्य भव को दुर्लमता पर पांचवां दृष्टान्त) [इसका सम्बन्ध दाल १ दोहा ७ (पृ०४) के साथ है] किसी नगर में एक महान् धनवान एवं समृद्धिशाली रत्न-पारखी वणिक था। बहुमूल्य रत्नों का संग्रह करना उसका प्रधान कार्य था। वह संग्रहीत रत्नों को कभी बेचता नहीं था। उसके पांच गुणवान पुत्र थे। पुत्रों की इच्छा थी कि दुगने तीगुने मूल्य पर इन रत्नों को बेचकर अपार धनराशि प्राप्त की जाये। किन्तु, अपने पिता के आगे इनकी एक नचलती थी। एक बार संयोगवश वह वृद्ध नगर से कहीं बाहर चला गया। उसके पुत्र तो ऐसे अवसर की बाट जोह ही रहे थे। उन्होंने अपने पिता द्वारा अर्जित सभी रत्नों को दूर देश से आए व्यापारियों को ऊँचे मूल्य पर बेचकर काफी धन प्राप्त कर लिया। वृद्ध वणिक जब लौटा तो रत्न नहीं पाकर बड़ा ही क्रुद्ध हुआ। उसने अपने पुत्रों को यह आज्ञा दी कि जिस प्रकार भी हो, वे उन रत्नों को वापस ले आएँ। पिता की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए उसके पांच पुत्र रत्नों की तलाश में निकले। तबतक वे सारे रत्न विभिन्न व्यापारियों द्वारा विभिन्न देशों के विभिन्न व्यक्तियों के हाथ बेचे जा चुके थे। रत्नों का पाना दुर्लभ हुआ। देव-संयोग से वे खोये रत्न मिल भी जायें, लेकिन, खोया हुआ मनुष्य जन्म पाना दुर्लम ही है। कथा-१. स्वम का दृष्टान्त ' (मनुष्य भव की दुर्लभता पर छठा दृष्यन्त) __[इसका सम्बन्ध ढाल १ दोहा ७ ( पृ० ४ ) के साथ है ] द्यूत-व्यसन के कारण पाटलिपुत्र से निष्कासित राजकुमार मंगलदेव घूमते घूमते उज्जयिनी नगरी में पहुंचा। कुशल वीणा-वादन एवं मधुर-संगीत से उसने उज्जयिनी के नागरिकों को मुग्ध कर लिया। उसी नगरी में रूप-लावण्यगविता देवदत्ता वेश्या रहती थी। पारस्परिक कला के आकर्षण से दोनों में आसक्ति हो गई। मंगलदेव देवदत्ता के यहाँ ही रहने लगा। लेकिन देवदत्ता की मां ने मंगलदेव को निर्धन समझ उसे घर से निकाल दिया। फिर भटकता हुआ, कई दिनों का उपवास प्रतधारी मंगलदेव अटवी पारकर एक गांव में पहुंचा। वहाँ भिक्षा में उसे उड़द के बाकले मिले। उन वाकलों को स्वयं न ग्रहण कर उसने तालाब के किनारे ध्यान लगानेवाले साधु को पारणा के निमित्त दे दिया। मंगलदेव के इस कार्य से पास की देवी बहुत ही प्रसन्न हुई और उन्होंने उसे वरदान मांगने को कहा। मंगलदेव ने कहा"मुझे देवदत्ता गणिका सहित सहस्र हस्तियुक्त राज्य प्राप्त हो।" देवी से प्रत्युत्तर मिला "ऐसा ही होगा।" रात्रिकाल में मंगलदेव उस तपस्वी की कुटिया में ही सो गया। कुटिया में तपस्वी का शिष्य भी शयन कर रहा था। मंगलदेव एवं ऋषि-शिष्य होनों ने स्वप्न में चन्द्रमा को अपने मुंह में प्रवेश करते देखा । तपस्वी के समक्ष जाकर शिष्यने. स्वप्नफल जानने की जिज्ञासा की। तपस्वी ने कहा-"आज तुम्हें भिक्षा में घी और शक्कर का रोट मिलेगा।" शिष्य का जब स्वप्नफल सत्य हुआ, वह बड़ा ही प्रसन्न हुआ। उधर मंगलदेव एक स्वप्न-विशेषज्ञ के पास गया जिसने उसे बताया कि एक सप्ताह में उसे एक बहुत बड़ा राज्य मिलेगा। सात दिन नगर का संतानविहीन राजा कालधर्म को प्राप्त उत्तराध्ययन सूत्र अ०३ गा०१को नेमिचन्द्रिय टीका के आधार पर । उत्तराध्ययन सूत्र अ०३ गा०१को नमिचन्द्रिय टीका के आधार पर । Scanned by CamScanner

Loading...

Page Navigation
1 ... 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289