Book Title: Shatrunjayatirthoddharprabandha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 5
________________ उपोद्घात समय १०४४२ मनुष्य बसते थे; जिन में ६५८६ हिन्दू, १९५७ जैन १८७८ मुसलमान २० कृस्तान और १ पारसी था। कस्बे में राजकीय कुछ मकानों को छोड कर शेष सब जितने बड़े बड़े मकान हैं वे सब जैनसमाज के हैं। शहर में सब मिला कर कोई ४० के लगभग तो यात्रियों के ठहरने की धर्मशालायें हैं जिनमें लाखो यात्री आनंदपूर्वक ठहर सकते हैं। इन धर्मशालाओं में से कितनी ही तो लाखों रुपये की लागत की है और देखने में बडे बडे राजमहालयों सरीखी लगती हैं। विद्यालय, पुस्तकालय, औषधालय, आश्रम, उपाश्रय और मंदिर आदि और भी अनेक जैन संस्थायें शहर में बनी हुई है जिन के कारण यह छोटासा स्थान भी एक रमणीय शहर लगता है। यात्रियों के सतत आवागमन के कारण सदा ही एक मेला सा बना रहता है। जैनसमाज अपने धार्मिक कार्यों में कितना धन व्यय करती है यह जिसे जानना हो उसे एक सप्ताह इस शहर में बिताना चाहिए जिससे जैन लोकों की उदारता का ठीक ठीक ख्याल आ जायगा। यहाँ पर प्रतिवर्ष न जाने कितने ही लाख रुपये, धर्मनिमित्त खर्च होते होंगे। ___ पालीताणा शहर में मील डेढ मील के फासले पर, पश्चिम की तरफ सुप्रसिद्ध शत्रुजय नामक पर्वत है। शहर से पर्वत की उपत्यका तक पक्की सडक बनी हुई है और दोनों तरफ वृक्षों की पंक्तियें लगी हुई हैं। इस पर्वत के सिद्धाचल, विमलाचल और पुण्डरिकगिरि आदि और नाम भी जैनसमाज में प्रचलित है। जैनग्रंथों में इस के २१ या १०८ तक भी नाम लिखे हुए मिलते हैं ! समुद्र के जलसे यह १९८० फीट ऊँचा है। पहाड कोई बहुत बड़ा या विशेष रमणीय नहीं है। परंतु जैनग्रंथ, माहात्म्य में इसे संसार भर के स्थानों से अत्यधिक बताते हैं। यों तो सेंकडों ही ग्रंथों में इस पर्वत की पवित्रता और पूज्यता का उल्लेख मिलता है परंतु धनेश्वर नाम के एक आचार्य का बनाया हुआ शत्रुज्य-माहात्म्य नाम का एक खास बडा ग्रंथ ही संस्कृत में, Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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