Book Title: Shastra Sandeshmala Part 23
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

View full book text
Previous | Next

Page 345
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उदयत्थंतरि बाहि सहसा तेसठि छसय तेसट्ठा । तह इगससिपरिवारे रिक्खडवीसाडसीइ गहा ॥ १७८॥ छासद्विसहस णवसय पणहत्तरि तारकोडिकोडीणं । सण्णंतरेणवुस्सेहंगुलमाणेण वा हुंति ॥ १७९ ॥ गहरिक्खतारगाणं संखं ससिसंखसंगुणं काउं। इच्छिअदीवुदहिम्मिय गहाइमाणं विआणेह ॥ १८० ॥ चउ चउ बारस बारस लवणे तह धायइम्मि ससिसूरा । परओदहिदीवेसु अ तिगुणा पुचिल्लसंजुत्ता ॥१८१ ॥ णरखित्तं जा समसेणिचारिणो सिग्ध सिग्घतर गइणो। दिट्ठिपहमिति खित्ताणुमाणओ ते णराणेवं ॥ १८२ ॥ पणसय सत्तत्तीसा चउत्तीससहस्स लक्खइगवीसा। पुक्खरदीवड्ढणरा पुव्वेण अवरेण पिच्छंति ॥१८३॥ णरखित्तबहिं ससिरविसंखा करणंतरेहि वा होइ । तह तत्थ य जोइसिआ अचलद्धपमाण सुविमाणा ॥ १८४ ॥ इह परिहि तिलक्खा सोलसहसा सयदुण्णि पउणअडवीसा। धणुअडवीससयंगुलतेरससड्ढा समहिआ य ॥ १८५ ॥ सगसयणउआकोडी लक्खा छप्पण्ण चउणवइसहस्सा । सढसयं पउणदुकोस सड्ढबासट्ठिकर गणिअं ॥१८६ ।। वट्टपरिहिं च गणिअं अंतिमखंडाइ उसु जिअं च धणुं । बाहुं पयरं च घणं गणेह एएहि करणेहिं विक्खंभवग्गदहगुणमूलं वट्टस्स परिरओ होइ। विक्खंभपायगुणिओ परिरओ तस्स गणिअपयं || १८८॥ ओगाहुउसू सुच्चिअ गुणवीस गुणो कलाउसू होइ। विउसुपिहुत्ते चउगुणउसुगुणिए मूलमिह जीवा ॥१८९ ॥ ॥ १८७॥ 33८ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430