Book Title: Shastra Sandeshmala Part 23
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भीमेय महाभीमे काल महकाल रुद्द महारुद्दे । चउम्मुह नरमुह अणमुह कच्छूलनामा इमे भणिया ॥ १७२।। भीमावलि जियसत्तु रुद्दो विसानलो सुपइट्ठो य । अयलो य पुंडरीओ अजियधरो अजियनाभो य ॥१७३ ।। पेढालो तह सच्चई एए रुद्द एक्कारसंगधरा । उसहो जिय सुविहाई अडजिण सिरिवीरतित्थभवा ॥१७४ ।। पढमित्थ विमलवाहण चक्खुम जससमं चउत्थमभिचंदे । तत्तो य पसेणईए मरुदेवे चेव नाभी य
|| १७५ ।। नवधणुसयाई पढमो अट्ठय सत्त अद्धसत्तमाइं च । छच्चेव अद्धछट्ठा पंचसया पणवीसा य
॥ १७६ ।। चखुम जससमं च पसेणईए य पियंगुवण्णाभा। अभिचंदो ससिगोरो निम्मलकणयप्पहा सेसा ॥ १७७ ॥ चंदजस चंदकंता सरूव पडिरूव चखु(क्खु) कंता य । सिरिता मरुदेवी कुलगरपत्तीण नामाणि
॥१७८ ॥ संघयणसंठाणं उच्चत्तं चेव कुलगरेहि समं । वण्णेण एगवष्णा सव्वाओ पियंगुवण्णाभा
॥ १७९ ॥ पलिओवमदसभागो पढमस्साओ तओ असंखिज्जा। ते आणुपुव्वी हीणा पुव्वा नाभिस्स संखिज्जा ॥ १८० ॥ जं चेव आउयं कुलगराणं तं चेव होइ तासंपि । जं पढमगस्स आउं तावईयं होइ हत्थिस्स
।। १८१ ॥ जं जस्स आउय खलु तं दशभाए समं विभईऊणं । मज्झिलट्ठतिभाए कुलगरकालं वियाणाहि
॥ १८२ ॥ दो चेव सुवण्णेसु उदधिकुगारेसु होंति दो चेव। दो दीवकुमारेसु एगो नागेसु उववण्णो
॥ १८३॥
४०७
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430