Book Title: Shastra Sandeshmala Part 23
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 385
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पडिकमण १ निवु २ देसिय ३ चेलुक्के ४ मास ५ वच्छरिय कप्पे ६ । छद्धा अट्ठिइकप्पो, मज्झिमगाणं २२ न इअराणं ॥ २९० ॥ पुरिमस्स ९ दुविसुज्झो चरमस्स अ दुरणुपालणोकप्पो। मज्झिमगाण २२ मुणीणं सुविसुज्झो सुहणुपालणओ ॥ २९१ ।। समइयचउवीसत्थय-वंदणपडिकमण काउसग्गा य। पच्चक्खाणं भणिअं, जिणेहिं आवस्सयं छद्धा ॥२९२ ।। ते दुण्ह सय दुकालं, इअराणं कारणे इओ मुणिणो। पढमिअरवीरतित्थे रिउजडरिउपण्णवक्कजडा ॥ २९३ ॥ पंचासववेरमणं पंचिंदियनिग्गहो कसायजओ। दंडत्तिगाउ विरई, सतरसहा संजमो इअ वा || २९४॥ पुढवि १ दग २ अगणि ३ मारुअ४ वणस्सइ ५ बि-६ ति ७ चउ ८ पणिदि ९ अज्जीवे १० । पेहु ११ प्पेह १२ पमज्जण १३, परिठवण १४ मणो १५ वई १६ काए १७ ॥ २९५ ॥ दाणं सीलं च तवो-भावो एवं चउव्विहो धम्मो । सव्वजिणेहिं भणिओ, तहा दुहा सुअचरित्तेहिं ॥ २९६ ॥ पुरिमंतिमतित्थेसुं ओहनिजुत्तीइ भणिअ परिमाणं । सिअवत्थं इअराणं, वण्णपमाणेहिं जहलद्धं ॥ २९७ ॥ जहजुग्गं कुमरनिवइ-चक्कीकालेहि होइ गिहिकालो। वयकालाओ केवलि-कालो छउमत्थकालूणो ॥ २९८॥ पुव्वाण लक्खमेगं तं पुव्वंगूण तं सगजिणाणं । पुण पुण चउअंगूणं तो पुव्वसहस्सपणवीसं ॥ २९९ ॥ समलक्खा इगवीसं चउपण्णापनर सड्ढसत्तेव । सड्डदुगं तो सहसा पणवीसं पउणचउवीसं ॥ ३०० ॥ 3७८ For Private And Personal Use Only

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