Book Title: Shastra Sandeshmala Part 23
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गब्भवहारुवसग्गा, चमरुप्पाओ अभाविआ परिसा । ससिसूरविमाणागम, अणंतकालिअ दसच्छेरा ॥३४३ ।। सिरिरिसह सुविहिसीयल, मल्लीनेमीण कालि तित्थे वा । अभर्विसु पणच्छेरा, कमेण वीरस्स पंचऽण्णे ॥ ३४४ ॥ गुरुलहुमज्झिमतणुणो, पुरिसा दो चउसयं च अट्टहियं । सिझंति एगसमए, सुआउनेओ विसेसत्थो ॥ ३४५ ॥ एकसमयेण जुगवं, उक्कोसोगाहणाइ जं सिद्धा । उसहो नवनवइसुआ, भरहट्ठसुआ अ तं पढमं ॥ ३४६ ॥ सीअलतित्थे हरिवा-सजुयलिओ पुबवेरिअमरेणं । रज्जे ठविओ तत्तो, हरिवंसो सेस पयडत्था
॥ ३४७॥ चक्की भरहो सगरो, मघवं सणंकुमरसंतिकुंथुअरा । सुभुममहपउम हरिसेण जयनिवो बंभदत्तो अ ॥ ३४८॥ विण्हु तिविट्ठ दुविठ्ठ, सयंभुपुरिसुत्तमे पुरिससीहे। तह पुरिसपुंडरीए, दत्ते लक्खमण कण्हे अ
॥ ३४९ ॥ हरिजिट्ठभायरो नव, बलदेवा अयल विजयभद्दा अ। सुप्पहसुदंसणाणं-दनंदणा रामबलभद्दा
॥ ३५० ॥ चउपण्णुत्तमपुरिसा, इह एए हुति जीवपण्णासं। नवपडिविण्हूहि जुआ, तेसट्ठि सिलागपुरिस भवे ते आसगीव तारय, मेरय महुकेढवे निसुंभेअ। बलिपहराए तह रावणे अ नवमे जरासिंधू
॥ ३५२॥ कालम्मि जे जस्स जिणस्स जाया, ते तस्स तित्थम्मिजिणंतरे जे। नेआ उ ते तीअ जिणस्स तित्थे निएहि नामे हि कमेण एवं।। ३५३ ।। दो तित्थेस सचक्कि अट्ठ अजिणा तो पंच केसीजुआ, तो चक्काहिव तिण्णिचक्कि अ जिणा तो केसिचक्की हरी ।
॥ ३५१ ॥
303
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430