Book Title: Shanti Pane ka Saral Rasta
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 25
________________ को उनसे वैसे ही निर्लिप्त कर लो जैसे कि कमल की पंखुड़ियाँ अपने आप को कीचड़ से ऊपर उठा लिया करती हैं। आखिर, कोई और तो हमें हमारी शांति देने नहीं आएगा। हम ही हमारी शांति की व्यवस्था करेंगे। संबोधि' का मार्ग अर्थात् शांतिपूर्वक जीने का मार्ग, होश और बोधपूर्वक जीने का मार्ग। यह मार्ग व्यक्ति को उसकी शांति से रूबरू करवाता है। व्यक्ति के अन्तरर्मन में घर कर चुकी अशांति का विसर्जन करवाता है, व्यक्ति को उसकी शांति प्रदान करता है। एक ऐसी शांति जो सदा आपके साथ रहे। आपकी छाया बनकर रहे। आपके जीवन की रोशनी बनकर आपके साथ रहे। हो सकता है किसी व्यक्ति ने स्वर्ग और नरक का अनुभव न किया हो। क्या आपने कभी किसी देवता के दर्शन किए हैं? नहीं। क्या आपने कभी स्वर्ग देखा है? या आपने कभी नरक देखा है? नहीं। पर जिस व्यक्ति ने देव और दानव न देखे हों, स्वर्ग और नरक न देखा हो, लेकिन उसने भी अपने भीतर 'शांति' और 'अशांति' को ज़रूर देखा है। सच्चाई यह है कि शांति स्वयं ही स्वर्ग है, अशांति स्वयं ही नरक है। शांति-पथ का अनुयायी स्वर्ग का साधक है, वहीं अशांति का अनुसरण करने वाला स्वयं ही स्वयं का गुलाम है। यदि कोई व्यक्ति कभी क्रोध नहीं करता, सदा शांत और सौम्य रहता है, सचमुच वह दिव्य है, वह धरती पर रहने वाला देवता है। उस देव को मेरा प्रणाम है। आप अपने आप पर गौर करें कि क्या आप इस स्थिति में हैं कि आपको कभी किसी बात पर क्रोध, चिंता या तनाव नहीं होता? अगर आप ऐसे हैं तो निश्चय ही आपकी सूरत को देखना किसी भी महान तीर्थ के मंदिर में बैठी मूर्ति के दर्शन से कम नहीं है। मैंने सुना है: एक थियोलॉजिकल कॉलेज में धर्म-प्रचारकों को तैयार किया जाता था। कहते हैं एक बार कॉलेज के कुलपति ने छात्रों से कहा, 'जब कभी तुम धर्म-शास्त्र का विवेचन करो तथा बीच में स्वर्ग का जिक्र आ जाए तो तुम प्रसन्नता जाहिर करना, अपने चेहरे पर हँसी लाना, आँखों में ताज़गी २४ शांति पाने का सरल रास्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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