Book Title: Shanti Pane ka Saral Rasta
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 62
________________ श्वसन-धारा का ध्यान करते हुए चलता चला जा रहा था। उसने गुरुवाणी को ध्यान में रखते हुए संकल्प लिया कि हर हालत में सचेत रहूँगा।श्वासधारा का अनुभव करते हुए वह अनुभव कर रहा था कि मैं सचेत हो रहा हूँ..... मैं सचेतन हूँ। मैं शांतिमय और आनंदमय हूँ। अब मैं औरों के साथ भी सचेतनता से ही पेश आऊँगा। धैर्यपूर्वक वह श्वसन-धारा का अनुभव करते हुए उस महिला के घर पर पहुँचा, आहार भी लिया, वहाँ से वापस लौटकर भी आ गया और गुरु के पास आकर उसने यह मार्ग देने के लिए साधुवाद दिया। उसे लगा, 'गुरु ने सचेतनता का गुर देकर उसे मन की सौ-सौ मुसीबतों से मुक्त होने का अमृत मार्ग दे दिया।' आज वह सहज है। उसे शांति का, स्थिरचित्त रहने का मार्ग मिल गया है। उसे लगा सचेतनता का मार्ग ही आनंद और मुक्ति का मार्ग है। 'सचेतनता'- साधना का एक अकेला मंत्र है। साधना के मंदिर का पहला सोपान सचेतनता ही है। यदि सहजता सुख और शांति का द्वार है तो सचेतनता संबोधि और मुक्ति का द्वार है। सचेतनता हमें संसार से संन्यास की ओर ले जाती है। सचेतनता हमें बोधि और संबोधि की ओर ले जाती है। सचेतनता यानी हर कार्य को होश और बोधपूर्वक करना । सचेतनता यानी सावधानी । अपने प्रत्येक कार्य को, प्रत्येक व्यवहार को, प्रत्येक शब्द को, प्रत्येक कदम को, प्रत्येक श्वास को सचेतनता से लीजिए। 'श्वास-साधना' के प्रयोग में हम अपनी आती-जाती प्रत्येक श्वास पर ध्यान धरते हैं। महावीर और बुद्ध दोनों ने ही सचेतन प्राणायाम पर जोर दिया है। पतंजलि सचेतन प्राणायाम को ध्यान और समाधि का पहला आधारसूत्र मानते हैं। ___ श्वास हम जितनी शांत, मंद और गहरी लेंगे, सचेतनता हमारी उतनी ही गहरी होगी। अनुभव करते हुए गहरी साँस लेना, अनुभव करते हुए गहरी साँस छोड़ना, दो साँसों के बीच रहने वाले गेप का, स्पेस का, अवकाश का अनुभव करना - यही है सचेतन प्राणायाय। इसे 'आनापान सती' भी कहते सचेतनता में छिपी है शांति की साधना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98