Book Title: Shanti Pane ka Saral Rasta
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 95
________________ साथ हैं यह एक संयोग है। यह संयोग कब तक रहेगा, कहा नहीं जा सकता। यह संयोग वापस कब होगा, यह भी कहना कठिन है। आप पति-पत्नी हैं, यह भी एक संयोग है । मैं किसी पिता का पुत्र बना हूँ यह भी एक संयोग है। कोई व्यक्ति मेरा पिता बना यह भी एक संयोग है। अगर संयोग को संयोग भर मान लिया जाए तो अपने-आप जीवन में निर्लिप्तता रहेगी। यदि जीवन में निर्लिप्तता रहती है तो व्यक्ति घर में रहकर भी संत बनकर जीता है। संत बनना कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन सबके बीच रहते हुए, सब कुछ करते हुए भी अपने आप को निर्लिप्त रखना यही सच्ची साधना है। ___ जीवन में अगर कोई प्रतीक याद भी रखना है तो कमल के फूल को याद रखिए। वह सबके साथ होता है, लेकिन फिर भी अपने आप में स्वतंत्र अस्तित्व लिए हुए होता है। वह मुक्त और निर्लिप्त होता है। कहते हैं: जब कोई सम्राट अस्वस्थ हो जाता है तो स्थिति यह बन जाती है कि अगर उसके पास में कोई छोटी-सी भी ध्वनि हो जाए तो उसे बर्दाश्त नहीं हो पाती। उसके रोग को ठीक करने के लिए वैद्यराज ने कहा था कि इन पर लाल चंदन घिस कर लगाया जाए तो इनके शरीर का ताप शांत हो सकता है। कहते हैं कि रानियाँ चंदन घिसने के लिए बैठीं। चंदन घिसने लगीं तो चूड़ियों की खनखनाहट की आवाज आने लगी तो सम्राट ने कहा, 'यह आवाज़ मुझसे बर्दाशत नहीं होती। रानियों से कहो कि आवाज न करें।' रानियाँ थोड़ी देर में चंदन घिस लाईं। राजा ने पूछा, 'चंदन क्या तुम्ही ने घिसा?' रोनियाँ बोलीं, 'हाँ राजन्, हमने ही घिसा है।' सम्राट ने कहा, 'पर पहले चूड़ियों की आवाज़ आ रही थी। वे बोलीं, 'हमने, चूड़ियाँ उतार दी जिससे कि आवाज न हो।' 'तो क्या तुमने मेरे जीते जी अपने हाथ की चूड़ियाँ उतार दी?' रानियाँ बोलीं, 'राजन् ! सौभाग्य के प्रतीक स्वरूप हमने केवल एक ९४ शांति पाने का सरल रास्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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