Book Title: Shanti Pane ka Saral Rasta
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 94
________________ जो निर्लिप्त नहीं हैं, लिप्त हैं वे अपने पोते की एक छोटी-सी बीमारी भी बर्दाश्त नहीं कर पाते। जो निर्लिप्त हैं वे अपने घर में हो जाने वाली किसी मृत्यु को भी सहजता से ले लिया करते हैं। यह मानते हुए कि देह का गिरना तय है। यह देह चाहे चालीस की उम्र में गिरे या अस्सी की उम्र में, रवि को गिरे या शनि को, किसी-न-किसी एक दिन, एक वार को गिरनी तय है। जो तय है, वह हो गया। बस! नदी, नदी रह गई और नाव किनारे लग गई। नदीनाव का संयोग टूट गया। महावीर और बुद्ध ने अनित्यता के बोध पर बहुत जोर दिया है। अर्थात् सब कुछ क्षणभंगुर है। जिसका उदय है, उसका विलय निश्चित है, फिर किसके प्रति राग, किससे द्वेष । हर हाल में सहज। कहते हैं : झेन गुरु निनाकावा जब अपना शरीर छोड़ रहे थे तभी उनके पास आईक्यू नाम से दूसरे झेन गुरु पहुँचे और कहा, क्या मैं आपका सहयोगी बन सकता हूँ।' निनाकावा ने जवाब दिया, 'मैं यहाँ अकेला आया हूँ और अकेला ही जाऊँगा। फिर आप मेरी कैसी हैल्प कर सकते हैं?' आईक्यू ने उत्तर दिया, 'यदि आप वास्तव में सोचते हैं कि आप आ और जा रहे हैं, तो यह आपका भ्रम है । मैं आपको वह रास्ता दिखाता हूँ जिस पर न आना है न जाना। लेट मी शो यू द पाथ ऑन विथ देयर इज नो कमिंग एंड नो गेट।' मैं वह रास्ता दिखाता हूँ जहाँ न जन्म है, न मत्यु!' निश्चय ही आईक्यू ने उसे वह रास्ता सुझाया कि मृत्यु के क्षणों में भी निनाकावा आनंदित हो उठा। वह मुस्कुराया और चला गया। साधक मृत्यु को ऐसे वरण करे। जब तक जिए तब तक कमलवत् जिए। हर साधक को अपने भीतर कमल के फूल की स्मृति बनाए रखनी चाहिए कि मैं सबके साथ वैसे ही रहूँ जैसे कि कोई पानी और दलदल में कमल का फूल रहा करता है। सबके साथ रहो। बच्चे हैं, पोते हैं, पोतियाँ हैं, पत्नी है, पति है, माँबाप हैं। सबके साथ हिलमिल कर रहो। पर यह बोध बनाए रखो कि व्यक्ति अकेला आता है और अकेला ही जाता है। आए तो साथ में कुछ न लाए और जाएँगे तब भी कुछ नहीं ले जाएँगे। सब संयोग हैं । यहाँ आप और हम साथ अनुसरण कीजिए आनंददायी धर्म का ९३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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