Book Title: Shanti Pane ka Saral Rasta
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 83
________________ भक्त बनो। महावीर ने केवल यही कहा कि तुम स्वयं महावीर बनो। बौद्ध बनने की प्रेरणा बुद्ध नहीं दे सकते। बुद्ध की प्रेरणा तो बुद्ध बनने की ही होगी। महावीर या बुद्ध का भक्त होना - यह किताबों का अनुसरण हुआ और स्वयं महावीर और बुद्ध होना – यह जीवन में धर्म का सर्वोदय हुआ। बेहतर तो यह होगा कि व्यक्ति धैर्यपूर्वक यह देखे कि अब तक तो वह किसी किताब के द्वारा कहे गए धर्म का अनुसरण करता रहा, पर अब वह धैर्य और शांतिपूर्वक यह सोचे कि मेरे जीवन का धर्म क्या है? जैसे पानी का धर्म शीतलता है, आग का धर्म ऊष्णता है। ऐसे ही आदमी सोचे कि आदमी का धर्म क्या है? अगर जल का धर्म शीतलता है तो आदमी का भी स्वभावगत धर्म अवश्य होगा। जिस दिन आपमें से कोई भी व्यक्ति इस बिन्दु पर सोचना शुरू कर देगा, उसी दिन से जीवन में वास्तविक धर्म की शुरुआत हो जाएगी। ओढ़ा हुआ धर्म, आरोपित धर्म, बाहर से भीतर की ओर ले जाया गया धर्म बाहर का धर्म है, भीतर का धर्म प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को आत्मचिंतन करना होगा कि तुम्हारा धर्म क्या है? जब तक व्यक्ति यह न सोचे, जब तक तुम्हारे पास इस तरह की समझ न आए तब तक अवश्यमेव किताबों के धर्म का अनुसरण करते रहना, पंथ और परम्परा का अनुसरण करते रहना, पर जिस दिन यह सोचने के लिए प्रेरित हो जाओ, तब तुम्हारे जीवन में वास्तविक धर्म का जन्म होगा। तब वो धर्म किसी और का न होगा, तब वो धर्म तुम्हारी अन्तआत्मा का धर्म होगा। अपने द्वारा अगर सोचने के लिए बैठ गए और अगर तुम्हारी अन्तआत्मा ने तुमसे कह दिया कि क्रोध करना धर्म है तो तुम क्रोध का अनुसरण करो। किताबों ने अगर कहा है कि क्रोध करना बुरा है तो किसी का क्रोध नहीं छूटा, मान नहीं छूटा, माया-लोभ नहीं छूटे इसलिए क्योंकि हम बाहर के धर्म, किताबों के धर्म में ज्यादा आस्था रखने लग गए। प्रत्येक व्यक्ति को वास्तविक धर्म को प्राप्त करने के लिए यह सोचना चाहिए कि इंसान होकर इंसान का धर्म क्या है? इस बारे में सोचना ही जीवन शांति पाने का सरल रास्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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