Book Title: Shanti Pane ka Saral Rasta
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 84
________________ का धार्मिक और आध्यात्मिक चिंतन है। अभी तो कहना पड़ता है कि ये करो और वो मत करो पर जीवन में धर्म को जोड़ने वाला, जीवन के पाठों को पढ़कर धर्म की शुरुआत करने वाला व्यक्ति जो कुछ करेगा वह धर्म का ही आचरण होगा क्योंकि वो कभी गलत कर ही न पाएगा। वो जो भी करेगा सही ही करेगा। किसी की भी अन्तआत्मा किसी को भी गलत सलाह और प्रेरणा नहीं देती। मैं धार्मिक हूँ, मेरी पलकें झपकती हैं तो भी उसमें धर्म की आभा होती है और अगर मेरी जिह्वा खुलती है तो उसमें भी धर्म का माधुर्य होता है। मैंने उस धर्म का भी आचरण किया है जो धर्म में लिखा है, मैंने उसे भी समझा है और उसके क्या परिणाम हो सकते हैं, उसको भी समझा है। जब-जब मैंने यह सोचा मैं जिस धर्म का आचरण कर रहा हूँ वो तो किसी किताब की लिखी हुई पंक्ति है। क्या मैं उसी पंक्ति को आचरित करने के लिए पैदा हुआ हूँ? मेरा धर्म क्या है? मेरा स्वरूप क्या है? मेरी इच्छाएँ क्या हैं? मेरा लक्ष्य क्या है? मैं अपने द्वारा किन परिणामों को प्राप्त करना चाहता हूँ? मेरे जीवन की धन्यता किसमें है? मुझमें भी कभी ये जिज्ञासाएँ जन्मी हैं। आप भी सोचें, सोच-सोचकर सोचें। आपकी आत्मा खुद आपको रास्ता देगी। ज्ञान के द्वार खोलेगी। जीवन को सहजता से जिया जाए, सचेतनता से जिया जाए, सकारात्मकता से जिया जाए, निर्लिप्तता से जिया जाए। यह दृष्टिकोण भीतर की प्रेरणा से प्राप्त हुआ धर्म है। लोग चिंता करते हैं, मैं कहूँगा आप चिंतन करें। चिंतन रास्ता देता है। हर विज्ञापन, हर आविष्कार के पीछे चिंतन की पहली भूमिका होती है। किताबों ने स्वर्ग की बातें कही हैं, किताबों ने नरक की बातें कही हैं; अच्छी बात है। पर मैं यह अनुरोध करना चाहूँगा उस नरक से भयभीत मत होना जो नरक किसी पाताल में बना हुआ है और उस स्वर्ग को पाने के लिए भी हाथ-पाँव मत चलाते रहना जो किसी आकाश में बना है। सद्धर्म का मार्ग हमें यह प्रेरणा देता है कि सबके भीतर नरक की आग सुलग रही है। क्रोध की, काम की, विकार की, मान की, राग-द्वेष की। इस नरक से बचोगे तो पाताल में बने हुए नरक से भी बच जाओगे। अपने अनुसरण कीजिए आनंददायी धर्म का ८३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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