Book Title: Shanti Pane ka Saral Rasta
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 63
________________ हैं। यानी आत्मस्मृति के साथ आती-जाती साँस का अनुभव करना, उसकी प्रेक्षा और अनुपश्यना करना। हर समय हमारी साँस एक मिनट में करीब पन्द्रह चलती है, पर सचेतन प्राणायाम का अभ्यास सधता जाए, तो यही एक मिनट में 8-10 तक पहुँच जाएगा। हाथी एक मिनट में मात्र 10 साँस ही लेता है जबकि उसका शरीर इतना भीमकाय होता है। हाथी सौ साल जीता है, इसके पीछे एक कारण उसका मंद-गहरी सांस लेना भी है। कहते हैं, कछुआ एक मिनट में करीब 56 साँस ही लेता है। यही कारण है कि कछुआ मनुष्य और हाथी से भी अधिक उम्र पाता है। आप भी साँसों को साधे । शांत-मंद साँसों को साधे। ध्यान का यदि आपको अन्य कोई विधि-प्रयोग नहीं आता, तब भी आप केवल एक ही बोध को, एक ही संकल्प को अपने साथ जोड़ लें और वह यह कि मैं सचेतन प्राणायाम करूँगा। साँस की डोर के सहारे, साँस के सूक्ष्म मार्ग के सहारे आप अपने सूक्ष्म मानस में प्रवेश पाने में सफल हो जाएँगे। पहले दो-चार दिन यह प्रयोग 10-10 मिनट तक करें। धीरे-धीरे स्वतः इसमें समय की बढ़ोतरी हो जाएगी। कुल मिलाकर एक ही मंत्र साधना का, संबोधि-साधना का, शांति की साधना का अपना लीजिए और वह है सचेतनता। ध्यान में बैठो, तो साँसों के प्रति, शरीर के प्रति, शरीर के सुखद-दु:खद संवेदनों के प्रति, विचारधाराओं के प्रति सचेतनता साधे और जब ध्यान से उठ जाएँ, तो अपने प्रत्येक कर्म को सचेतनता से साधे । स्वाभाविक है कि सेविंग करते वक्त आखिर ब्लेड का कट तभी लगता है जब आप अपनी सचेतनता, अपना ध्यान चूक जाते हैं। खाना खाते वक्त गाल दाँतों के बीच तभी आता है जब आप सचेतनता रखनी भूल जाते हैं। निश्चय ही सचेत अवस्था में किया गया कार्य पूर्ण होता है, वहीं अचेत अवस्था में किया गया कार्य गलतियों का शिकार होता ही है। खाओपिओ, उठो-बैठो, बोलो-बतलाओ - हर काम में एक ही मंत्र को साधिए - सचेतनता। सचेतनता यानी एक काम एक मन । खाना खाओ तो ध्यान से खाओ। ६२ शांति पाने का सरल रास्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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