Book Title: Shanti Pane ka Saral Rasta
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 68
________________ आपसे रूबरू होने लगता है। यों तो प्रत्येक व्यक्ति यह भलीभाँति जानता है कि वह कौन है, यहाँ कहाँ से आया है और वापस यहाँ से कहाँ लौट कर जाएगा। व्यक्ति जानता है कि वह अमुक पिता का पुत्र है, अमुक शहर से यहाँ तक आया है और यहाँ कुछ दिन प्रवास करके वापस अपने उसी शहर को लौट जाना है। अपने परिचय के नाम पर हर किसी आदमी के पास ऐसा ही कोई न कोई छोटामोटा परिचय हुआ करता है। लेकिन व्यक्ति यह नहीं जानता कि वह पिता और पुत्र के परिचय से भिन्न वास्तव में कौन है? वह यह भी नहीं जानता कि माँ के गर्भ में वो कहाँ से आया? और वह यह भी नहीं जानता कि वह मरणोपरान्त यहाँ से किस दिशा, विदिशा या गति की ओर जाएगा। सामान्य रूप में व्यक्ति पिता और पुत्र, पति और पत्नी के परिचय तक ही अपने आप को सीमित रखता है। लेकिन ज्ञान और ध्यान का उदय होने पर प्रत्येक व्यक्ति यह भलीभाँति जान लेता है कि सारे संबंध एक संयोग भर हैं। वह भलीभाँति जान लेता है कि अपनी माँ के गर्भ में वह कहाँ से आया है और शरीर का त्याग करने के बाद वह यहाँ से कहाँ जाएगा। हर व्यक्ति एक अज्ञात लोक से पृथ्वी-ग्रह पर आता है। पृथ्वी ग्रह पर कुछ दिन तक प्रवास करके वह वापस उसी अज्ञात लोक की ओर लौट जाता है। वह एक प्रकाशपूरित लोक से आया है और वापस उसी प्रकाशपूरित लोक की ओर लौट जाता है। पृथ्वी-ग्रह पर तो वह केवल अमुक समय से अमुक समय तक प्रवास करता है। कुछ फूल खिलाता है और पुनः लौट जाता है। इस आत्म-बोध को ही जीवन-का-ज्ञान कहते हैं । ज्ञान गति देता है, ध्यान स्थिति देता है, ध्यान से ही वास्तविक ज्ञान का जन्म होता है। इस ज्ञान से ही व्यक्ति जीवन का सत्य जानता है। व्यक्ति सत्य को जान सकता है किसी ज्ञानी गुरु की वाणी को सुनकर। वह जान सकता है किसी धर्म-शास्त्र को पढ़कर। वह जान सकता है ध्यान के द्वारा अपने में उतरकर, अपने आपसे रूबरू होकर। ध्यान से जानिए स्वयं को ६७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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