Book Title: Shanti Pane ka Saral Rasta
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 77
________________ महाकाव्य को नर्मदा नदी में विसर्जित करवा दिया। बड़ी अद्भुत बात है यह। भीतर के घेरों से मुक्त होने के लिए हमें भी नर्मदा में अपने आग्रहों, आक्रोशों को विसर्जित करना होगा। ध्यान तभी सफल-सार्थक होगा। इसलिए हम स्वयं को इन घेरों से, मन की खटपट से मुक्त करें। मेरे साधक भाइयो, मेरी प्यारी बहिनो, अगर ध्यान के दौरान भी आपको अपने भीतर खटपट महसूस होने लगे तो निराश न हों। तत्काल अपना चैनल बदल लें। .....खटपट हो सकती है। आपके टी. वी. में भी चलते-चलते खराबी आ सकती है। रिमोट कंट्रोल इसीलिए है। अपनी मानसिक धाराओं को बदलिए। जब-जब भी लगे, चैनल बदलना है, ॐ के साथ 10-20 गहरी साँस लीजिए। पुनः साँसों को धीमे...धीमे...धीमे करते जाइए। स्वतः शांति आने लगेगी। श्वास को सूक्ष्म करते जाएँ, स्वतः मन एकाग्र होने लगेगा। अन्तर्मुखी होने की शक्ति जागृत होगी। आप स्वयं को ज्ञानमय और प्रज्ञामय पाएँगे। शांतिमय और सहज आनंदमय पाएँगे। इससे मन की शुद्धि प्रारम्भ होने लगेगी। राग-द्वेष आदि विकार कम होने लगेंगे। आपकी आत्मक्षमता और दक्षता स्वतः बढ़ती जाएगी। आप स्वयं को आत्मवान्/चैतन्यवान् पाएँगे। जब-जब हम अपने प्रति सकारात्मक नज़रिया, सकारात्मक दृष्टिकोण रखकर ध्यान में उतरेंगे, तब-तब अपने आप को स्थिरचित्त करेंगे। शरीर प्रतिमा की तरह स्थिर हो, वाणी मौन हो, मन शांत हो, तब-तब ध्यान गहरा होता है। जब हम अपने मन, वचन, काया के व्यापारों को रोक कर स्थिरचित्त होते हैं तो हमारी आत्मा आत्मरत हो जाती है, चेतना चैतन्य-भाव में स्थित हो जाती है। ज्यों-ज्यों सचेतनता सधती जायेगी, अपने साथ अपना आत्मभाव जुड़ता जाएगा। व्यक्ति अपनी आत्म-चेतना का, आत्मज्ञान का सहज मालिक बनता चला जाएगा। स्वयं के चित्त के शांत होने पर स्वयं के भीतर जिस शून्य का, जिस जीवनी-शक्ति का अनुभव होता है, जिस प्राण-शक्ति का अनुभव होता है, वही तुम हो, वहीं तुम्हारा अस्तित्व है और उसको जानने का नाम ही शांति पाने का सरल रास्ता ७६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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