Book Title: Shanti Pane ka Saral Rasta
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 71
________________ शांतिमय करने के लिए हमें थोड़ा-सा धैर्य धारण करना होगा। अपने आप में मन को लगाना होगा। ध्यान में बैठने के उद्देश्य को याद रखिए और साँसोंसाँस पर पुनः पुनः स्वयं को स्थिर कीजिए । देह के प्रति, संबंधों के प्रति रहने वाली ममत्वबुद्धि का त्याग करके आत्म-स्मृतिपूर्वक स्वयं में स्वयं को स्थिर करें। पहले क्रियायोग करें अर्थात् सचेतन प्राणायाम करें। जैसे ही लगे कि मन भटका, पुनः 10-12 गहरे श्वास लें। अपनी ओर से लगातार श्वास को धीमी... धीमी... धीमी और गहरी करते जाएँ। प्रभु का, आत्म-भाव का स्मरण करते हुए साँसों का अनुभव करें। साक्षी-भाव को साधे । 20-30 मिनट तक यह सचेतनता बनाएँ। जैसे ही सचेतनता बननी शुरू होती है, ध्यान स्वतः एकलय होने लग जाता है। __महावीर ने एक शब्द दिया है – पिंडस्थ ध्यान और बुद्ध ने शब्दप्रयोग किया है- कायानुपश्यना। अगर लगे कि चित्त में सीधे ही शांति और स्थिरता नहीं बन पा रही है, तो अपने देहपिंड का ध्यान धरें, उसकी संवेदनाओं पर, भीतर में बह रही प्राणधारा पर ध्यान धरें। यह बोध रखें कि मैं देह में उतरकर देह-पिंड का ध्यान धर रहा हूँ और अपनी काया को शांतिमय बना रहा हूँ। अभी तक तो हमें काया से तब-तब ही शांति और आनंद मिला, जब-जब पति-पत्नी आपस में मिले या जिस वस्तु का हमें उपभोग करना है, उस वस्तु का उपभोग करने को मिला। जबकि यह निमित्तप्रधान शांति है, क्षणिक शांति है। सच्ची शांति तब है जब उद्वेग-संवेग हमें व्यथित न करें। इसलिए मैंने कहा था कि ध्यान करना तो टी. वी. देखने की तरह है कि जैसे टी. वी. को देखना हो तो जब जो चैनल चलाओगे तब वो वैसे दृश्य, वैसे विचार, वैसे स्वरूप उभर कर आयेंगे। उसी तरह मन में भी परमात्मा के नाम का चैनल चलाओगे तो परमात्मा से जुड़ी हुई भावदशा उभरकर आयेगी। अपनी अन्तआत्मा से जुड़ा हुआ चैनल चलाओगे तो उससे जुड़े हुए भाव, उससे जुड़े हुए अनुभव, तरंगें उभर कर आएँगी और काया की शांति और अन्तर्मन की शांति से जुड़ा हुआ उपक्रम करोगे तो उनमें एक गहरा रिलेक्सेशन, ७० सरल रास्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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