Book Title: Shanti Pane ka Saral Rasta
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 50
________________ अपमान कर दिया है तो निश्चय ही पीड़ा तो हुई पर यह ज़रूरी थोड़े ही है कि अब तुम अपना सारा ध्यान इसी पर देते रहो। आनन्द लेने के लिए तो अपने-आप को देख लो, आनन्द मिलने लग जाएगा। यदि तुम्हारी पत्नी तुम्हें झिड़कती हो तो उसके पास क्यों बार-बार अपना नाक रगड़ने के लिए जाते हो। किसी बगीचे में चले जाओ। कोई प्यार भरा गुलाब का फूल खिला हुआ है, उसी को जाकर अपना प्यार दे दो। उसी से प्यार ले लो। तुम अगर फूलों की गुलाबी कोमल पत्तियों को अपने होठों का स्पर्श देओगे, उन्हें प्यार करोगे तो वह फूल तुम्हें कहीं ज्यादा सुख देगा। कम-से-कम झिड़की देने वाली पत्नी के आगे नाक रगड़ने से तो फूलों का सान्निध्य पाना अधिक श्रेष्ठ है। किसी का फोटो अख़बार में छपता है, तो लोग अपने फोटो को देखकर खुश होते हैं। फोटो छपना अच्छा लगता है; पर रोज-रोज तो फोटो छप नहीं सकता। आनंद तो रोज-रोज लिया जा सकता है। जब भी अपना फोटो देखने की इच्छा हो जाए, आईने में देख लिया करो। जैसा चाहो, वैसा फोटो दिख जाएगा। आनन्द तो लेना आना चाहिए। जो आनन्द लेना नहीं जानते वे वास्तव में जीवन को जीना नहीं जानते। वे किसी लाफिंग क्लब में जाकर कृत्रिम ठहाका लगाया करते हैं। जिनको जीना आता है वे तो सहज में ही गुलाब के फूल बन कर जीते हैं। फूल तो रात को मुरझा जाता होगा मगर सहजता से जीवन जीने वाला व्यक्ति रात को अगर बाथरूम में भी जा रहा है तो बाथरूम का दरवाजा बाद में खोलेगा पहले मुस्कराएगा। जिसने जीवन दिया है उसके लिए मुस्कराएगा। जीवन का आनंद लेते हुए मुस्कुराएगा। ज्यों-ज्यों ध्यानयोग हमारे अन्तर्मन के साथ आत्मसात होता जाएगा, यह मुस्कान विस्तार लेती जाएगी। प्रकृति और परमात्मा के घर से जो भी अवसर मिले, उसका आनंद लो। परमप्रभु के प्रति अभिवादन करो कि उसने आपको योगमय जीवन जीने का अवसर दिया। नहीं तो हो सकता है कि आप घर-गृहस्थी की चक्की में सहजता को बनाइए समाधि का साधन ४९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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