Book Title: Shanti Pane ka Saral Rasta
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 36
________________ अपनाइये। यदि गधों के प्रति भी सकारात्मक, रचनात्मक नज़रिया अपनाया जाए, तो जिन्हें लोग गधा कहते हैं, उनसे भी किसी गणेश की प्रतिमा, किसी ध्यान-मंदिर का निर्माण किया जा सकता है, किसी महावीर के मौन को स्थापित किया जा सकता है, किसी बुद्ध की मुस्कान को, किसी राम की मर्यादा को निर्मित किया जा सकता है। तरीक़ा होगा उपयोग करने का। बाकी तो गधे-गधे ही रहते हैं। गधा कभी घोड़ा नहीं होता, गधा तो गधा ही रहता है। यदि कोई तुम्हें गधा कह दे तो बुरा मत मानना। यह मत समझना कि उसने आपको गाली दी है। हकीकत में वह गधा था, सो गधे को गधा दिखाई दिया। उसके मन में गधेपन का संस्कार है, सो गधा दिखाई देता है। यदि मन में अच्छे संस्कार होते तो वह आपको इंसानियत की नज़रों से देखता। गधे को सब गधे दिखाई देते हैं । आदमी को सब आदमी दिखाई देते हैं। भला, दूसरों में अगर मैं भगवान देखूगा तो तभी न् जब मैं अपने आप में भगवान देखूगा। अपने आप में भगवान देखने वाला ही दूसरों में भगवद्-दर्शन का आनंद ले सकेगा। गधा तब तक गधा ही रहता है जब तक अपने गधेपन का त्याग न कर दे। अगर गधा शेर की खाल ओढ़ ले, तब भी गधा शेर नहीं हो जाता है। गधा शेर तभी होता है जब व्यक्ति अपने सिंहत्व को जागृत करता है। वेशबाना-नाम में कुछ ज्यादा वजूद नहीं है। जड़बुद्धि लोग वेश-बाने की पूजा करते हैं। महावीर तो पूर्ण गृहस्थ को ही सम्मान देते थे। बुद्ध अनाथपिंडक जैसे साहुकार को भी आदर देते थे। संबुद्ध लोग वस्त्र को नहीं, व्यक्ति को पहचानते और सम्मान देते हैं। भले ही, मेरे पास भी संन्यास का वेश हो, मैं संत हूँ, पर मैं संन्यास को कपड़ों से नहीं तोलता। मेरे लिए संन्यास एक अवस्था है। मैं अन्तर्-दशाओं में ही संन्यास को देखता और जीता हूँ। मुझ पर जब कोई टिप्पणी करता है, तो मुझे संत हाकुइन याद आते हैं, जो चरित्र पर लांछन लगाए जाने के बावजूद मुस्कुराते हुए केवल इतना ही कहते हैं, 'ओह, तो ऐसी बात है। ठीक है।' जब कोई अपमानित करने वाली बात कह देता है तो मुझे स्वामी रामतीर्थ का ख़्याल आता है, जिन पर पोंछा मुस्कान दीजिए, मुस्कान लीजिए ३५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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