Book Title: Shankar Kavi Pranit Vijvalliras Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ अनुसंधान - २४ ढाल १० मां गंगा अने सूर्य विषेना विवादनो निर्देश थयो छे. तो ढाल ११मां सेंकडो ग्राम-नगर- देशोना संघो शत्रुंजयनी यात्राए आवे छे, अने जगद्गुरुना सांनिध्ये तीर्थयात्रा आराधे छे, तेनुं विस्तृत वर्णन छे. ढाल १२१३मां शत्रुंजयना महिमानुं वर्णन थयुं छे. ढाल १४मां गुरुनी लागणीने अनुसरीने सर्व संघ विजयसेनसूरिने हवे गुजरात पधारवानी विनंतिनो पत्र पाठवे छे तेनुं सुन्दर वर्णन छे. 12 छेल्ली - पंदरमी ढालमां उपसंहार करतां कवि हीरगुरुना विशिष्ट उपाध्यायशिष्योनां नामो उल्लेखे छे, अने प्रान्ते सं. १६५१ना वर्षे निजामपुरे आ 'विजयवेली'नी रचना करी होवानुं कवि शंकर सूचवे छे. आदिनाथ तीर्थंकर माटे अनेकवार 'आदिल' शब्दनो प्रयोग अहीं थयो छे, ते रसप्रद छे. मुस्लिम - अरेबिक संस्कारना वातावरणमां ते समाजना लोकोने ओळख आपवा माटे आवो शब्द कोईए प्रयोज्यो हशे, जे आ रीते ग्रन्थस्थ थयो जणाय छे. तदुपरांत सुलतान, झडाल, नेजा, असमान, रेसम, हुर, वगेरे मुसलमानी शब्दोनो कविए सुखद प्रयोग कर्यो छे. व्यवध, व्यकट, ध्यन - आवा बधा प्रयोगो ऋषभदासनी रचनाओमांना तेवा घणा प्रयोगोनुं स्मरण करावे छे, अने ते समयनी बोलचालनी भाषा प्रत्ये लक्ष्य खेंचे छे. प्रति अशुद्ध छे. घणा शब्दो त्रुटक छे, कां स्पष्ट समजाता नथी. ते कारणे अर्थ समजवामां जरा काठिन्य अनुभवाय तेम छे. परभाषाना शब्दोनो प्रचुर प्रयोग छे, ते शब्दो बेसाडवानी पण समस्या खरीज आ बधुं छतां, आज लगी अप्रगट रहेली एक महत्त्वपूर्ण अने ऐतिहासिक कृतिनुं सम्पादन यथामति करवानो मोको मळ्यो तेनो परितोष छे. साथे, सुज्ञ जनोने प्रार्थना छे के आ रासनी हस्तप्रति क्यांयथी पण जडी जाय तो ते पाठववा कृपा करवी. जेथी आनुं पुनः संशोधन थई शके. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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