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June-2003
37 तुम्ह बिछूरि बहू दिन भए लाल हम क्यु रहि ना जाइ पूछे पवरे जोसी जांनां श्री गुरुकइ कब आई श्रीगुरु किधु कब आवइ सब जपे मासा(ला?) पावइ ॥३ मो०।। यू गूमांन न कीजीइ लाल रूसं जाई बीदेस हम खिजमतथिं कछूअ न चूके ईतनी चढाई क्युं रीस ईतनी चढाई क्यु रीस जपि गुण तीहा नीसदीसइ ।। ४ मो० ॥ साहिब तेरा हीरजी लाल आणि क्युं मनमांह निपट निमोह न होईई साजन महिर न आतु मनमाहि महिर न आतु मनमाहींआं तपति उ नारि बिन छहीआं (?) ॥५ मो०॥ चलन न देता दोही कू लाल जु जानत विसी घात हूं बूझत तूम निठोर निरागी सत न रहिईन बातु गूनहनबाढि कछू गातुं (?) ॥६ मो०।। श्रीविजयसेनसूरीसरु रे लाल सब मुनी के सिरताज शंकर तेज वधारण लाला चलनकू ढील न काज चलन कू ढील न कीजइ सब जन आनंद सू दीजइ ॥७मो० ॥
ढाल १५ ॥ राग धन्यासी ॥ मि पाउ रे सब जगकु तारण पायु हीरविजयसूरीसर गातां हैअडइ हरिष न माउ रे ॥१॥ श्रीविजयसेनसूरीसर ग(गा)तां, भणे रसना अंमृत पाउ चरणइ कमल मन ज्युं मधुकर पति पूरण प्रेम अथाउ रे ॥२ सब०॥ श्रीधर्मसागर मोटा वाचकवर विमलहरिष उवझाया शांतिचंद वाचक गुणसागर परिघल पून्यि पाया रे ॥३ सब० ॥ सकलकलानधि भविकजनबोहक कल्याणविजय गणधारी सोमविजय उवझाय पगट मल भाणचंद सी जोरी रे (?) ॥४ सब०॥
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