Book Title: Shankar Kavi Pranit Vijvalliras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 21
________________ June-2003 तुम गाम ठाम कहां धाम हो ज० तुम माता पिता क्या नाम हो ज० । तुम कइसा पालु धर्म हो ज०१ ॥४।। तुम केरे केते सीस हो ज० तुम किउं करि बारी रीस हो ज० । तुम क्या क्या पढे हो ज० तुम कुं करि कीआ मन गढे हो ज० ||५|| तुम ध्यान योध बलवंत हो ज० तुम जपहु कुणका मंत हो ज० । तुम खासे पंडित कूण हो ज० तुम मइ नही देखत उण हो ज० ॥६॥ हवई ए बोलनु जबाप श्रीविजयसेनसूरि दि छि । एह ज ढाल ॥ त्व विजयसेनसूरिंद हो महीधरण लाडिले कहि अकबर प्रति सुखकंद हो म० । हम छोड्या वाहनभेद होम० हम चलत न पावइ खेद हो म० ॥१॥ हए हीरजी गूज्जर देस हो म० उंहि बहुत हइ नयर निवेस हो म० । मइ तास सीस रजरेणु हो म० तस राग मोह्या मन एण हो म० ॥२॥ मइ तस पद पंकज हंस हो म० तांका कछ्यू मो मइ अंस हो म० | तुम क्षिणु क्षिणु करत अयाद हो म० तुम गुणके लीने नाद हो म० ॥३॥ १. एक पंक्ति छूटी गई छे एम जणाय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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