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अनुसंधान-२४ Jटक : सो मेह वूठा आज तूठा हरिख भरि कुलदेवता
ध्यन सो मानव विमलगिरि पिरि हीरगुरुकू सेवता ॥१४॥ आश्चर्य मोटू महीअ माहि छत्रपति सेतुंज दीइ तेजपाल प्रति कहि शंकरी ते हीरजी बहू फल लीइ ॥१५॥
ढाल १२ ॥ दूहा ॥ सेतुंजगिरि श्रीआदिजिन, जगगुर हीर रतन्त्र । एक ठुरि जो वंदही सो नर नारी धिन ॥१॥ ज्यूगप्रधान श्रीजगत्रगुरु तास सूजस वीस्तार । विस्तारी कवीयण कहि सो किमहि न आवि पार ।।२।।
राग केदारो ॥ लाभ लही श्रीजगत्रगुरू बोली, सेतुंज समु नही तोलि रे । मूगतिखेत्र ए साचु जाणु कुमती कां मन डोलि रे ॥१॥ मि वंदुरे गिरिचंदु रे सब तीरथ, चंदु रे भविजन पापनिकंदु रे जिणि दीठि भाजि भवदंदु रे ॥२ वंदु० ॥ संप्रति जिनना सीस मूनीश्वर पांच कोडिसू सीधा रे । पुंडरीक सो एतां कोडी अणसण लाहो लीधां रे ॥३ वंदु० ॥ नमि वीद्याधरना हीआ दिल(?) पूत्र सू जोडी रे । साढी पांच कोडी मुनि साथि वाडिल (वारिखिल?) द्रावीड दस कोडी रे
॥४॥
भरत अनि श्रीराम मूण्यंदा, तीन तीन तस कोडी रे । नारद लाख एकाणूं रखिसूं, भवनी सांकल छोडी रे ॥५॥ पांडव पांचि वीसां कोडी, संबू नि प्रद्युमना रे । साडी आठ कोडी मूनी साथि, सीव पाया नही दूम्ना रे ॥६॥
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