Book Title: Shankar Kavi Pranit Vijvalliras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 19
________________ June-2003 27 राग मल्हार सामेरी ॥ श्रीविजयसेनसूरि कहि, जगगुर प्रति कर जोडि ललनां । अब कहिणा यूगता नही, हम शिर तुम कर छोरि ललनां वि. १॥ कहत हीर मुनिहंसकुं तुम कब न रहे दूरि । 'जाउ' कहुं किम आ मुखिइं, हृदय प्रेम जल पूरि ललनां ।।२।। मेरे बालवइरागी लाडिले तपगच्छध(धु?)र धोरी धीर ललनां । कहां लाहुर गूजर कहां किउं याउगे वीर ललनां ॥३॥ तुम प्रतापि जिहां तीहां दिन दिन हुइ रंगरोल ललनां । माहि(टि?) आदेस दीउ गुरजी 'मनकापड के वो (बो)ल (?) ललनां ॥४॥ सीख मागि गुर केरीआं महीतलि दिली अवाज ललनां । विजयसेन-शाहा मिलनकी, संघ करि सब साज ललनां ॥५॥ साथि लीए बहु मेवडे, मुनिजन वादी संग ललनां । सा मंडाण जु देखही सबजन होवइ रंग ललनां ॥६।। हीरविजयसूरि पाए नमी, तेहस्युं मांगइ सीख ल. । मो शिर पणि (एणि?) धरु गुरजी, जिम धरी देतई दीख ललनां ॥७|| तीन प्रदक्षण देवही, तुम पय मोहि आधार ललनां । वृद्ध भाव वहइ तुमतणा, तुम तन करणी सार ललनां ।।८|| अंदेसा मनि मत करु झूकी(?)सीस विदेस ललनां ।। तुम हृदयां भीतर धरूं, हीर सुमंत नरेस ललनां ।।९॥ तुम मेरे माता पिता, तुम मेरे सुलतान ललनां । वेगिइं चरण दिखावयो, तीन भुवन के भाण ललनां ॥१०॥ अनुक्रमि देप(स?) अजूआलता लाहुरि नयरि पहूत ललनां । उच्छ्व हुइ अनेकधा शंकर कहत बहूत ललनां ॥११॥ १. 'मत काएड(र)के बोल ललनां' (?) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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