Book Title: Shankar Kavi Pranit Vijvalliras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 3
________________ June-2003 11 शिष्योए विजय मेळव्यानी वात थई छे. अने ते पछी ढाल-विभागमां हीरगुरुथी प्रसन्न थएल वादशाहे तेमना विषे जे प्रशंसात्मक बोल उच्चारेला, तेनुं स्वरूप विस्तारथी मळे छे. 'हीररास'मां आ ज वात ऋषभदासे (ढाल ६०-६१मां) आलेखी छे, ते वांचतां अत्युक्ति थई होवानी शंका जागती, पण हीरगुरुनी विद्यमानतामां ज रचायेली आ रचनामां पण ते ज वातो लगभग तेवा ज शब्दोमां जोवा मळी, त्यारे ते उक्तिओ यथातथ होवानी सहज प्रतीति थई. ढाल ५मां विजयसेनसूरि आदिनी पाछा फरवानी विनंतिना पत्रोनी तथा बादशाहनी बेळे बेळे रजा लईने नीकळे छे त्यारे शाहनी विनंतिथी शान्तिचन्द्र वाचकनो हाथ स्वहस्ते शाहना हाथमां सोंपीने पछी विहार करे छे ते वर्णन छे. ढाल ६मां हीरगुरुना दयामय सदुपदेशथी बादशाह अकबरे जीवदयानां जे जे कार्यों कर्या हतां तेनुं बयान छे, अने ते अंगेनां शाही फरमानो खुद धनविजयगणि विहार करी करीने सर्वत्र पहोंचाडवापूर्वक तेनो अमल कराववानुं कार्य करे छे तेनी वात पण थई छे. ढाल ७ मां गुरुना विहारनी, सीरोहीमां चोमासानी, तथा त्यां दयाप्रधान कार्यो कर्यांनी वात छे, उपरांत, वाचक कल्याणविजयजीने वैराट नगरे प्रतिष्ठा कराववा मोकल्या, त्यां ते प्रसंगे बे करोड द्रम्मनो सद्व्यय थयानी पण नोंध छे. ढाल ८मां शत्रुजय-गिरनारनां तीर्थो शाहे हीरगुरुने भेट आप्याना उल्लेख साथे, राधनपुरे बिराजमान गुरु प्रत्ये विजयसेनसूरिने सत्वरे बादशाह पासे आववाना आमंत्रणनी सूचना छे. ८मी ढालना बीजा भागमां गुरुशिष्यनो हृदयद्रावक संवाद वांचतां एक बाजु वाचक गद्गदभाव अनुभवे छे, तो बीजी बाजु अहोभाव पण तेटलो ज जागे छे. ढाल ९/१ मां बादशाहें विजयसेनसूरिने पूछेला सवालो छे, तो ९/ २ मां गुरु द्वारा अपायेला तेना जवाबो छे, ते बहु रसप्रद छे. ते पछी नन्दविजय पासे ८ अवधान करावीने प्रसन्न थयेलो शाह तेमने 'खुशफहम', बिरुद आपे छे तेनी विगत छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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