Book Title: Shankar Kavi Pranit Vijvalliras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ 14 अनुसंधान-२४ तास पुत्र जेसंग मुणिउ, दोषे सोई अवगुणिउ । मई सुण्यु तेजु पुत्र ते तास तु ए ॥३॥ तस सुत लीबु सांभल्यु, अमृत पाहि सो गलिउ नवि छल्यु राजु पुत्र तेहनु ए ||४|| तास तणु सुत मांडण, ऐ तु (खैतु) सब दुख छांडण हांडण कीरति जगमा तेहनी ए ||५|| समरु सुत वली तास तु, पाप न आवइ आसतु जास तु प्रबल पूत्र ऊजल सदा ए ॥६॥ रामु अंगज तास ए, दीठइ पुहुचइ आम ए भास ए मेघु मयगलनी परिइंए ॥७।। राल्हण पुत्र सु सुंदरु ए, अभिनव भा(ला)गे पुरंदरू सुरतरु सहिजु सुत सोहइ भलु ए ॥८॥ नानु निरूपम नाम ए, सोनु सो अभिराम ए धाम ए गुण केरु गुणराज सो ए ।।९।। कमसिंह करमी भणु, डाहाना केम गुण गणुं अतिघणुं तोलानुं सुंदरपणुं ए ॥१०॥ मतिवंता महिराज ए, सिंधु सारइ काज ए छज ए देवचंद तस अंगजूए ॥११॥ राजधराभिध जाण ए, गांजण विमल विनाण ए सुजाण ए आसपाल अविनीतलि ए ॥१२॥ रंगु रतिपति रूप ए, साजन मानइ भूप ए __ अनुप ए राहलु अभिनव तर्या ए ॥१३॥ सामल सहिजि सुहाकरू, सगरू सोहइ मनहरु जगवरु जोमा जोड नहीं जगिई ए ॥१४॥ . आसग अनुपम सांभली, दीठइ देवसीइ रली मनि टली आरति वाहड देखतां ए ॥१५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32