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June-2003
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वड सरवर मछीआं भरे, ता मइ हो न न मेहलुं डोर । बहिरी बाज न छाडिहुं न न पाडु हो बनमांहि सोर ॥४॥ मृग न मारुं नासता वनचरा सांबर अरु हो रोझ । कारशकार तणा करुं न धरूं हो ए पशुअनका गोझ ॥५॥ जनमदिवस अकबरतणा आपि हो खेलइ नवरोज । तस दिन कोऊ न जीऊ मरि मेवडे सो लेसो लेवइ षोज ॥६॥ श्रीअकबरसुत तीनके जनमके दिन सोइ अमारि । पजूसण दुमणे पलइं, अट्ठाई तो तुं संभारि ॥७॥ ईद परव पतिशाहकु, शाहकी हइ जे चांदराति । वरसगांठि शरकारमइ जोतम(?) दिनु नही जीउ का घात ॥८।। बंद छोडाए बहु दुनी जीउ थइ न न मारूं चोर । तुम दरिशन पातक टरे जे जे हो मइ कीए अधोर ॥९॥ अयुं अब केते दिन ही एसो कहत हो किम आवइ पार । उमर वधारि हीरजी, सब पंखी पशुअन आधार ॥१०॥ दयाधर्मध्यारी हुआ छत्रपति श्री साह जलाल । दीन दुनीका पातशा उछव हो करि मंगलमाल ॥११॥ मेरी आज्ञा जब लगि, तब लगि हइ तेरी आण । अइसी करि वलामणीउ, उज्जका(?) निजहत्थि फुरमान ॥१२॥ आप मस्यारे (?) मेवडे, श्रीगुरुको सो सेवइ पाये । कहि शंकर गूज्जरप्रति, आवइ हो श्रीतपगच्छराय ॥१३।।
राग केदारु ॥
दूहा ॥ धन्यविजय धेन(धन) धन्य सो, महीतलि रक्खी माम (?) । जंघाचारणनी परिई करइ हीरनां काम ||१।।
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