Book Title: Setubandhmahakavyam Author(s): Pravarsen, Ramnath Tripathi Shastri Publisher: Krishnadas Academy Varanasi View full book textPage 8
________________ दो शब्द स्वतन्त्र भारत की राष्ट्रभाषा को सर्वथा सम्पन्न बनाने के लिये जहाँ ज्ञान, विज्ञान, शिल्प, कला आदि विषयों के मूर्धन्य विद्वान् अपने-अपने विषय के मौलिक ग्रन्थों की रचना हिन्दी में करने का प्रयास कर रहे हैं तथा विश्व की विभिन्न भाषाओं के विद्वान् तत्तद् भाषाओं में रचित प्रमुख कृतियों को हिन्दी के माध्यम से प्रस्तुत करने में संलग्न हैं, वहीं संस्कृतज्ञ हिन्दी-प्रेमियों के लिए भी इस महान् राष्ट्रिय अनुष्ठान में पूर्ण निष्ठा के साथ सहयोग देना अनिवार्य हो गया है। यह प्रसन्नता का विषय है कि संस्कृत के हमारे अनेक गण्यमान्य विद्वान् इस दिशा में कार्य आरम्भ कर चुके हैं, जिसके फलस्वरूप संस्कृत के अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हिन्दी में आ चुके हैं तथापि अभी बहुत कार्य करना शेष है। इसी कर्तव्यनिर्वाह के उद्देश्य से 'विमला' हिन्दी व्याख्योपेत आचार्य प्रवरसेनविरचित प्राकृत भाषा का 'सेतुबन्ध' महाकाव्य हिन्दीप्रेमियों के सम्मुख प्रस्तुत है । इसके दुरूह स्थलों पर श्रीरामदास भूपतिप्रणीत 'रामसेतुप्रदीप' संस्कृत व्याख्या से मुझे सतत प्रकाश मिला है, एतदर्थं उनके प्रति मैं कृतज्ञ हूँ। मेरे पुत्र-निविशेष श्री वेदप्रकाश द्विवेदी 'प्रकाश' ने पाण्डुलिपि तैयार करने में मेरी जो सहायता की है उसके लिये उन्हें सस्नेह आशीर्वाद है। डॉ. रमाकान्त त्रिपाठी, अध्यक्ष संस्कृत विभाग, डिग्री कालेज मठलार ( देवरिया ) ने भूमिका लिखने का जो कष्ट किया है, उसके लिये उन्हें क्या कहूँ, वे तो मेरे आत्मज ही हैं। अन्य जिन विद्वानों की कृतियों से मुझे तनिक भी सहायता मिली है, उनके प्रति सदा आभारी हूँ। प्रस्तुत महाकाव्य की इस हिन्दी व्याख्या से यदि हिन्दी के सांस्कृतिक चिन्तन-प्रवाह को अनुकूल गतिशील होने में तनिक भी सहायता मिली और हिन्दी-प्रेमियों को सन्तोष हुआ तो मैं अपने को कृतकृत्य समझंगा। राष्ट्रभाषा के अनन्य सेवाव्रती, चौखम्बा संस्कृत सीरीज वाराणसी के सञ्चालकबन्धुओं के प्रति मैं अत्यन्त कृतज्ञ हूँ, जिन्होंने अनेक कठिनाइयों के होते भी इसे प्रकाशित कर सबके लिये सुलभ बनाया । अन्त में अज्ञानवश अथवा प्रमादवथ हुई सकल त्रुटियों के लिये नतमस्तक हूँ । इति श्रीरामनवमी, २०२८ वैक्रमाब्द फैजाबाद विद्वद्विधेय :रामनाथ त्रिपाठी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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