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अचित्त जल का स्थानक
- डॉ. दिलीप धींग श्री स्थानकवासी जैन स्वाध्याय संघ, जोधपुर की ओर से वर्ष 2009 में स्वाध्यायी के रूप में मैं पर्युषण कालीन सेवाएँ देने के लिए शाजापुर गया । मध्य प्रदेश का यह जिला जैन धर्म के सुप्रसिद्ध विद्वान डॉ. सागरमल जैन का गृहनगर है। शाजापुर में प्राच्य विद्यापीठ की स्थापना करके डॉ. जैन ने अपने नगर को अनुपम उपहार दिया है।
शाजापुर में जैन समाज के साथ अनेक प्रेरक चीजें जुड़ी हुई हैं, उनमें एक चीज वहाँ मुझे उल्लेखनीय लगी, वह है - 'धोवन पानी वाला स्थानक' | कसेरा बाजार स्थित वह जैन स्थानक लगभग पौने दो सौ वर्ष पुराना है। स्थानीय श्रावक-श्राविकाओं ने बताया कि नींव से लेकर पूरा स्थानक बनने तक अचित्त (धोवन) पानी का ही उपयोग किया गया था।
संयोग यह बना था कि स्थानक भूमि के पास ही एक रंगरेज रहता था। कपड़े रंगने का उसका बड़ा कारोबार था। अपने व्यवसाय के निमित्त से उसे बहुत परिमाण में पानी विसर्जित करना होता था। जब स्थानक निर्माण का कार्य शुरू हुआ तो विवेकशील श्रावकों ने उस रंगरेज से कहा कि वह उपयोग किया हुआ पानी फेंकने की बजाय उन्हें दे दें। रंगरेज इस सुझाव पर प्रसन्नता से सहमत हो गया। रंगरेज द्वारा उपयोग कर लिये गये पानी को संग्रह करने के लिए कोठियों आदि की व्यवस्था कर ली गई। प्रतिदिन रंगरेज द्वारा फेंकने योग्य पानी को स्थानक निर्माणकर्ताओं द्वारा ले लिया जाता।
इस प्रकार आरंभ से लेकर अंत तक पूरे स्थानक के निर्माण में रंगरेज द्वारा उसके व्यवसाय के निमित्त से तैयार अचित्त पानी का ही उपयोग कियागया। बोलचाल में उस स्थानक को आज भी 'धोवन पानी वाला स्थानक' अथवा 'धोवन पानी का स्थानक' कहा जाता है।
उस स्थानक में समय-समय पर अनेक साधु-साध्वियों के वर्षावास, प्रवास और स्थिरवास हो चुके हैं। स्थानकवासी जैन परम्परा के प्रसिद्ध सन्त कवि तिलोकऋषि का भी वहाँ प्रवास हुआ था। आचार्य आनन्दऋषि का, आचार्य बनने के बाद पहला चातुर्मास उसी स्थानक में हुआ था। वह स्थानक साताकारी और ऊर्जा से भरा है। वहाँ प्रतिदिन धर्माराधना होती है। वह जैन स्थानक आज भी जल और अन्य संसाधनों के विवेकसम्मत उपयोग का सन्देश दे रहा है। वर्तमान में इस उपयोगी सन्देश की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक हो गई है।
(साभार : जिनवाणी, नवम्बर 2009)
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