Book Title: Saral Samudrik Shastra
Author(s): Arunkumar Bansal
Publisher: Akhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh

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Page 6
________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र पंचागुली साधना विधान पंचांगुली देवी के बारे में अनेक प्राचीन ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है और उसमें यह स्पष्ट किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति नियम पूर्वक पंचांगुली देवी की साधना करे तो शीघ्र ही वह सफल भविष्यवक्ता बन सकता है। किसी भी व्यक्ति का हाथ देखते ही उस व्यक्ति का भूत, वर्तमान और भविष्य उसके सामने साकार हो जाता है। साथ ही वह अनेक सूक्ष्म रहस्यों से भी भली भाँति परिचित हो जाता है। पंचांगुली साधना में शुभ मुहूर्त का विवेचन इस प्रकार है। मास यह साधना किसी भी महीने से प्रारंभ की जा सकती है। पर बैसाख, कार्तिक, आश्विन तथा माघ मास विशेष शुभ माने गये हैं। तिथि यह साधना शुक्ल पक्ष की द्वितीया, पंचमी, सप्तमी, अष्टमी, दशमी, अथवा पूर्णमासी से प्रारम्भ की जा सकती है। वार रवि, बुध, गुरु तथा शुक्रवार इसे प्रारंभ करने के लिये श्रेष्ठ माने गये हैं। नक्षत्र कृतिका, रोहिणी, पुनर्वसु, हस्त, तीनों उत्तरा, अनुराधा तथा श्रवण नक्षत्र विशेष अनुकूल माने जाते हैं।

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