Book Title: Saral Samudrik Shastra
Author(s): Arunkumar Bansal
Publisher: Akhil Bhartiya Jyotish Samstha Sangh

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Page 46
________________ सरल सामुद्रिक शास्त्र अध्याय - 4 4. The Importance of Hand Symtomps अंगे हस्तः प्रशस्तोऽयं शीर्षादपि विशिष्यते । साध्यन्ते पादशौचाद्या धार्मिक्यो येन सत्क्रिया ।। अंग विद्या में यद्यपि समस्त शारीरिक लक्षणों का अध्ययन किया जाता है, किन्तु शरीर के लक्षणों से हाथ के लक्षण विशेष महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन्हीं हाथों से मनुष्य सभी सांसारिक क्रियाएं करता है । सर्वाङ्गलक्षणप्रेक्षाव्याकुलानां नृणां मुदे । श्रीसामुद्रेण मुनिना तेन हस्तः प्रकाशितः । । मनुष्य स्वभावतः जिज्ञासु है इसीलिए वह सभी लक्षणों का ज्ञान प्राप्त करना चाहता है मनुष्य की इस ज्ञान-पिपासा को शान्त करने के लिए महामुनि श्री सामुद्र या समुद्र ने मनुष्य के कल्याण के लिए यह हस्तरेखा व सामुद्रिक शास्त्र विद्या प्रकाशित की है। हथेलियों के लक्षण उंगली की जड़ से पहले मणिबन्ध तक हथेली की लम्बाई कहलाती है तथा अंगूठे की जड़ से दूसरे अन्तिम सिरे तक के भाग को हथेली की चौड़ाई कहा जाता है इस सारे भाग पर जो भी चिन्ह होते हैं, वे सभी चिन्ह हस्तरेखा विशेषज्ञ के लिए अत्यन्त आवश्यक होते हैं। · 46 1. अत्यधिक चौड़ी हथेली ऐसे व्यक्ति सामान्यतः अस्थिर प्रकृति के होते हैं। इनकी पहचान यह है कि इन लोगों की हथेली लम्बाई की अपेक्षा चौड़ी ज्यादा होती है। ऐसी हथेली वाले व्यक्ति तुरन्त निर्णय नहीं ले पाते और किसी भी कार्य को करने से पूर्व बहुत अधिक सोचते - विचारते रहते हैं ।

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