Book Title: Santoka Vachnamrut
Author(s): Rangnath Ramchandra Diwakar
Publisher: Sasta Sahitya Mandal

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Page 5
________________ निवेदन प्रस्तुत पुस्तक पूज्य दिवाकरजीके कन्नड़ ग्रंथ 'वचन-शास्त्र-रहस्य'का हिन्दी-- रूपान्तर है। विद्वान लेखकने इसके विषयमें ठीक ही कहा है कि इसमें "शिवशरणोंका अमृत-संदेश" है। संत-साहित्य आठ-नौसौ साल तक कन्नड़ जनता-जनार्दनका कण्व्हार वना रहा है। उसीमेंसे कुछ वचन-सुमनोंको हिन्दी-भाषी पाठकोंके लिए. सुलभ किया गया है। ___ वचन-साहित्यके महत्त्व और माहात्म्यके विषयमें मुझे कुछ नहीं कहना है। पाठक स्वयं पड़कर अपना मत निर्धारित करेंगे । फिर भी मुझे दो-एक बातें निवेदन करनी हैं। हिन्दी-भाषी प्रदेशमें गंगा बहती है। भारतीय संस्कृतिमें गंगा नदीका विशिष्ट और महत्त्वका स्थान है। यह मानने में किसीको आपत्ति नहीं हो सकती कि गंगा हिन्दी-भापी प्रदेशका सांस्कृतिक चिह्न है और गंगामैया - हरिद्वारले कलकत्ता तकके सभी शहरोंके गंदे नालोंको उदरसात् करके भी अपनी पाप और ताप-नाशन शक्तिको बनाये रख सकती है। हमारी मान्यता है कि हिन्दी-साहित्य-वाहिनी गंगामैयाकी भांति है, जो हरिद्वारसे कलकत्ता तकके कई गंदे नालोंकों हजम करती रही है। इसीमें दक्षिणसे नर्मदा, ताप्ती, गोदा, भीमा, इंद्राणी, कृष्णा, तुंगा, कावेरी तथा ताम्रपीके प्रवाह आ मिलनेसे उसकी प्रकृति नहीं बिगड़ेगी, किंतु वह और विशाल होगी, गहरी होगी, शुद्ध होगी, पवित्र होगी, वेगवती होगी और बड़ी होगी । आजकी हमारी खड़ी बोली बड़ी बोली होगी। आज इस खड़ी बोलीको बड़ी बोली होनेके लिए अनन्तकी ओर हाथ फैलाना चाहिए, न कि सदैव उसकी प्रकृतिको चितामें घुटनेवाले. डॉक्टरोंसे अंक्ति कृत्रिम सीमाके अन्दर सिकुड़कर घुटते रहना चाहिए। इसके अलावा दक्षिण में रहनेवाले लोगोंको और एक सांस्कृतिक परंपरा है । हम दक्षिणके लोग लाखोंकी संख्या प्रतिवर्ष गंगास्नानके लिए उत्तरने आते हैं। काशी और बदरी-यात्राके लिए जाते हैं। हमारे सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक विश्वासके अनुसार केवल गंगामें डुबकी लगानेसे हमारी याया सांग और पूर्ण नहीं होती। गंगास्नान के बाद हम अपनी शक्तिके अनुसार

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