Book Title: Sanskrit Vangamay Kosh Part 01 Author(s): Shreedhar Bhaskar Varneakr Publisher: Bharatiya Bhasha Parishad View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकाशकीय ___ "संस्कृत वाङ्मय कोश" भारतीय भाषा परिषद का सबसे महत्त्वपूर्ण और गरिमामय प्रकाशन है। परिषद ने अब तक के अपने सारे प्रकाशनों में एक समन्वयात्मक व सांस्कृतिक दृष्टि को सामने रखा। परिषद का पहला प्रकाशन 'शतदल' भारत की विभिन्न भाषाओं से संगृहीत सौ कविताओं का संकलन है जिनको हिन्दी के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। इसके पश्चात् भारतीय उपन्यास कथासार और भारतीय श्रेष्ठ कहानियां इसी दृष्टि को आगे बढ़ाने वाली प्रशस्त रचनाएं सिद्ध हुई। कन्नड और तेलुगु से अनूदित “वचनोद्यान" और "विश्वम्भरा" इसी परम्परा के अंतर्गत हैं। प्रस्तुत प्रकाशन “संस्कृत वाङ्मय कोश" सुरभारती संस्कृत में प्रतिबिंबित भारतीय साहित्य, संस्कृति, दर्शन और मौलिक चिंतन को राष्ट्र वाणी हिन्दी के माध्यम से प्रस्तुत करनेवाली विशिष्ट कृति है। संस्कृत वाङ्मय की सर्जना में भारत के सभी प्रान्तों का स्मरणीय तथा स्पृहणीय अवदान रहा है। इसलिए सच्चे अर्थों में संस्कृत सर्वभारतीय भाषा है। संस्कृत वाङ्मय जितना प्राचीन है, उतना ही विराट् है। इस विशालकाय वाङ्मय का साधारण जिज्ञासुओं के लिए एक विवरणात्मक ग्रंथ प्रकाशित करने का विचार सन् 1979 में परिषद के सामने आया। फिर योजना बनी। पर योजना को कार्यान्वित करने के लिए एक ऐसे विद्वान की आवश्यकता थी जो संस्कृत साहित्य की प्रायः सभी विधाओं के मर्मज्ञ हों, सम्पादन कार्य में कुशल हों, संकलन की प्रक्रिया में कर्मठ हों और साथ ही निष्ठावान् भी हों। जब ऐसे सुयोग्य व्यक्ति की खोज हुई तो विभिन्न सूत्रों से एक ही मनीषी का नाम परिषद के समक्ष आया और वह है - डॉ. श्रीधर भास्कर वर्णेकर। परिषद पर वाग्देवी की जितनी कृपा है, उतना ही स्नेह उस देवी के वरद पुत्र डॉ. वर्णेकर का रहा। पिछले सात वर्षों से वे इस कार्य में निरंतर लगे रहे और ऋषितुल्य दीक्षा से उन्होंने इस कार्य को सुचारु रूप से सम्पन्न किया। उन्होंने यह सारा कार्य आत्म साधना के रूप में किया है और इसके लिए आर्थिक अर्घ्य के रूप में परिषद से कुछ भी नहीं लिया। यह परिषद का सौभाग्य है कि इतनी प्रशस्त कृति के लिए डॉ. वर्णेकर जैसे योग्य कृतिकार की निष्काम सेवा उपलब्ध हो सकी। इस गौरवपूर्ण प्रकाशन को सुरुचिपूर्ण समाज के सामने प्रस्तुत करते हुए भारतीय भाषा परिषद अपने को गौरवान्वित अनुभव करती है। परमानन्द चूडीवाल For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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