Book Title: Sanskrit Bhashanu Vyakaran
Author(s): Jethalal Govardhan Shah
Publisher: Gujarat Oriental Book Depot

View full book text
Previous | Next

Page 466
________________ ૪૫૫ (ग) भूमि, नदी, लता भने वनिता मे शो तथा तेभना · पर्याय अपवाह-स्रोतः भने यादः न. वि.भां छे. (घ) नीयेना शब्हा स्त्रीलिंभां छे- स्रुज, स्रज् दिक्, उष्णिष्, उपानह्, प्रावृष्, विप्रुष्, रुष, त्विष, तृष्, रुचि, नाडि, वीचि, नालि केलि, छवि, रात्रि, शष्कुलि, राजि, कुटि, वर्ति, भ्रुकुटि, चुटि, वलि, पंक्ति, वेदि-दी, खनि-नी, कृषि - षी, ओषधि - धी, कटि-टी, अङ्गुलि-ली, प्रतिपद्, आपद् - विपद्, संपद्, शरद्, संसद्, परिषद्, उषस्, संविद्, क्षुधू, समिध्, आशिष, धुर्, पुर्, गिर्, द्वार, त्वच्, यवागू, नौ, स्फिच्, चुल्लि, खारी, तारा, धारा, ज्योत्स्ना, शलाका, काष्ठा, तथा अप्, सुमनस्, समा, सिकता, वर्षा, अप्सरस्. નપુંસકલિંગ (क) अन, त मृत्प्रत्ययोवाजा शब्दो..! (ख) त्व, य, एय, अंक भने ईय तद्धित प्रत्ययवाणा राहो. (ग) इस् भने उस् स्वरान्त राहो. (घ) मन् भने अस् स्वरान्तवाणा द्विस्वरी शह (ङ) च व्यंजनान्त शब्दो (च) ल उपान्त्य व्यंजनवाजा राहो. (छ) ईजना अर्थवाजा हो (ज) शतथी उपरनी संख्याना शही अपवाह शंकु (पु.) affe (all). A (झ) मुख, नयन, लोह, धन, मांस, रुधिर, कार्मुक, विवर, जल, हल, धन, बल, अन्न, कुसुम, पत्तन, रण ने तेंना पर्याय।.

Loading...

Page Navigation
1 ... 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492