Book Title: Sanskrit Bhashanu Vyakaran
Author(s): Jethalal Govardhan Shah
Publisher: Gujarat Oriental Book Depot

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Page 465
________________ ૪૫૪ . चिह्न, पाप, शष्प, पुष्प, शिल्प, रूप, कुङ्कुम, युध्म, गुल्य, इध्म, हृदय, इन्द्रिय, उत्तरीय, द्वार, ' तक, वक्त्र, वप्र, नीर, छिद्र, रन्ध्र, श्वभ्र, पञ्जर, वैर, कुटीर, अम्बर, शिशिर, तन्त्र, क्षत्र, मित्र, कलत्र, चित्र, सूत्र, नेत्र, गोत्र, शस्त्र, शास्त्र, वस्त्र, पत्र, पात्र, पीयूष, पुरीष, कल्मष, बिस. (ग) देव, मनुष्य, दैत्य, पर्वत, समुद्र, स्वर्ग, मेघ, किरण, दिवस, आत्मा, नख, शर, असि, दन्त, केश, कण्ठ, गल, भुज, गुल्फ ॥ शम्ह तथा तमना पर्याप्त पुस्लिमां छ. साने नायेना अपवा छे. द्यो, दिव्, खारी, श्री सि.मां, मत त्रिविष्टप, दिन, अहन् , अने अभ्र मे न.सि.भा छ, (घ) नीयन। शम्। पुटियामा छ. अपाङ्ग, जनपद, मरुत् , ऋत्विज्, ऋषि, राशि, प्रन्थि, कृमि, ध्वनि, रवि, कपि, मुनि, ध्वज, गज, मुञ्ज, पुञ्ज, हस्त, कुन्त, वात, दूत,. धूर्त, करण्ड, मुण्ड, शिखण्ड, हृद, कन्द, कुन्द, विशेष, बुबुद, शब्द, पथिन्, मथिन् , ऋभुक्षिन् , स्तम्ब, नितम्ब, पूग, पल्लव, मठ, मणि, तरङ्ग, तुरङ्ग, गन्ध, स्कन्ध, मृदङ्ग, सङ्ग, पुंख, अतिथि, कुक्षि भने अञ्जलि. . ....... . स्त्रीलिंग .. - (क) अनि, मि, नि, ति, ई. अने उत्प्रत्ययोथी यसमा शह!. ग्लानि, भीति, गीति, कीर्ति, चमू वगैरे. ५४ वह्नि, अग्नि .. मने घृणि पु.लि. छे. ' (ख) २० थी र सुधीनी संध्याना शही, ई २१रान्त मे. स्वरी शम्ही, ति प्रत्ययथा साधित शम्ही.

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