Book Title: Sankheshwar Stavanavali
Author(s): Vishalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala
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१२
आराधितः श्रीऋषभस्य काले
विद्याधरेन्द्रेण नमीश्वरेण । पूर्व हि वैतादयगिरौ जिनं तं
वन्दे सदा शङ्खपुरावतंसम् ॥२॥ यः पूजितः पन्नगनायकेन
पातालभूमौ भवनाधिपेन । कालं कियन्तं जिननायकं तं
वन्दे सदा शङ्खपुरावतंसम् यदा जरासन्धजयोधतेन
कृष्णेन नेमीश्वरशासितेन । पातालतो विम्बमिदं तदानी
- मानीय संस्थापितमेव तीर्थम् ॥४॥ जराऽऽर्तभूतं स्वबलं विलोक्य
यत्स्नात्रपीयूषजलेन सिक्तम् । . सजीकृतं तत्क्षणमेव सर्व
वन्दे सदा शङ्खपुरावतंसम् ॥ ५ ॥ पञ्चाशदादौ किल पञ्चयुक्ते
एकादशे वर्षशते व्यतीते निवेशितः सजनष्ठिनाऽयं
वन्दे सदा शहपुरावतंसम् काले कलौ कामगवी प्रणष्टा
चिन्तामणिः कल्पतरुश्च नष्टः । धत्ते ह्यसौ तत्प्रतिहस्तकत्वं
वन्दे सदा शङ्खपुरावतंसम् ॥ ७ ॥
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