Book Title: Sankheshwar Stavanavali
Author(s): Vishalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala
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[५३] श्रीउदयरतन विरचित शंखेश्वरपार्श्वनाथस्तधन अजब बनी हे मूरती जिनकी अजव० निरखत नेन थकीत भये मेरे । मीट गई पलकमें मूढता मनकी. ।। अजव० (१) अंगे अंगीया अनुपम ओपे । झगमग ज्योति झराव रतनकी ॥ अजब० (२) प्रभुकी महेर नजर पर थारू । तनमन सव कोरा कौरि धनकी ॥ अजब० (३) अहनिश आंण वहे शिर नुरपति । मनमोहन अश्वसेन सुतनकी ॥ अजब० (४) उदयरतनप्रभु पास शंखेश्वर । मान लीओ खिजमति सष दीनकी ॥ अजव० (५)
[५४] श्रीउदयरतन विरचित श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथस्तवन प्यारो पारसनाथ, पूजाओं रसिया प्यारो० पारसनाथके शिर पर सोहे।
जडित मुंगत फणी उलसीया ॥ प्यारो० (१) केशरमें प्रभु पास शंखेश्वर ।
रहे गरकाव मेरे दील वसिया ॥ प्यारो० (२) चिहुं दिशि दीपक ज्योति विराजे ।
याथौ पाप तिमिर तो खसीया ॥ प्यारो० (३)
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