Book Title: Sankheshwar Stavanavali
Author(s): Vishalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 96
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.oAcharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४ वढीयार देसमें तीकोए साहेब । लोई तीन भुवनको जे तसोया ॥ प्यारो० (४) यदुकुलकी जेणे जरा निवारी । _घणु कमठ कठोर को मद घसीया॥ प्यारो० (५) जगपति ए जिनराजने जोतां । मेरे नेनकमल दोनुं हसीया। प्यारो० (६) उदयरतन चा प्रभुने नमवा । संघ आवे बहु धसमसीया ॥ .प्यारो० (७) श्रीहर्षविजयजी महाराज विरचित श्रीशंखेश्वरपार्श्वजिनस्तवन ( भाइजो कृत-जिनंदा तोरे चरण कमलको रे-ए देशी) श्रीशंखेश्वर दरशन कर रे,. कर रे कर रे कर रे कर रे [ए आंकणी] अदभुत रूप मनोहर सुंदर, देखत तन मन हर रे । अकल सरूपी जगत जयंकर । काम क्रोध सब झर रे ॥ श्री० [१] कमठासुरको मान भंजन कर, - जगत जयकार तुं कर रे । जादव संकट दर करीने, नाम शंखेश्वर धर रे ॥ श्री० [२] For Private And Personal Use Only

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