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वढीयार देसमें तीकोए साहेब ।
लोई तीन भुवनको जे तसोया ॥ प्यारो० (४) यदुकुलकी जेणे जरा निवारी । _घणु कमठ कठोर को मद घसीया॥ प्यारो० (५) जगपति ए जिनराजने जोतां ।
मेरे नेनकमल दोनुं हसीया। प्यारो० (६) उदयरतन चा प्रभुने नमवा । संघ आवे बहु धसमसीया ॥ .प्यारो० (७)
श्रीहर्षविजयजी महाराज विरचित
श्रीशंखेश्वरपार्श्वजिनस्तवन ( भाइजो कृत-जिनंदा तोरे चरण कमलको रे-ए देशी) श्रीशंखेश्वर दरशन कर रे,.
कर रे कर रे कर रे कर रे [ए आंकणी] अदभुत रूप मनोहर सुंदर,
देखत तन मन हर रे । अकल सरूपी जगत जयंकर ।
काम क्रोध सब झर रे ॥ श्री० [१] कमठासुरको मान भंजन कर,
- जगत जयकार तुं कर रे । जादव संकट दर करीने,
नाम शंखेश्वर धर रे ॥ श्री० [२]
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