Book Title: Sankheshwar Stavanavali
Author(s): Vishalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 97
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.oAcharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८० देश देशांतर संघ आवे, ... पूजा नवनवी कर रे ।। अंगकी रचना पापकी कटना, सकल कर्म दूर टर रे ॥ श्री० [३] राधनपुर संघ मली अति सुंदर, ओछव रचना भर रे। संघपति शिवचंदभाई हर्षी, | ___ जन्म जन्म दुःख हर रे ॥ श्री० [४] वदी कार्तिक पंचमीने दिवसे, यात्रा करी मनहर रे । सकल संघकुं महानंद उपजे, ___ ओछव मंगल वर रे ॥ श्री० [५] वामानंदन जगदुःखखंडन, चंद वदन सम धर रे। मूर्ति प्यारी मोहनगारी, निरखत आनंद भर रे ॥ श्री० [६] संवत सागर चार अंग विध, ऊऊँ मास बही खर रें। पास शंखेश्वर प्रभु अलवेसर. मुक्तिरमणीकुं वर रे ॥ श्री० [७] क्रोध लोभ सव दूर निवारी, पास प्रभु चित्त घर रे। आत्म लक्ष्मी ते पद पामी, आनंद हर्ष तुं वर रे ॥ श्री० [८] For Private And Personal Use Only

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