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देश देशांतर संघ आवे, ... पूजा नवनवी कर रे ।। अंगकी रचना पापकी कटना,
सकल कर्म दूर टर रे ॥ श्री० [३] राधनपुर संघ मली अति सुंदर,
ओछव रचना भर रे। संघपति शिवचंदभाई हर्षी, |
___ जन्म जन्म दुःख हर रे ॥ श्री० [४] वदी कार्तिक पंचमीने दिवसे,
यात्रा करी मनहर रे । सकल संघकुं महानंद उपजे,
___ ओछव मंगल वर रे ॥ श्री० [५] वामानंदन जगदुःखखंडन,
चंद वदन सम धर रे। मूर्ति प्यारी मोहनगारी,
निरखत आनंद भर रे ॥ श्री० [६] संवत सागर चार अंग विध,
ऊऊँ मास बही खर रें। पास शंखेश्वर प्रभु अलवेसर.
मुक्तिरमणीकुं वर रे ॥ श्री० [७] क्रोध लोभ सव दूर निवारी,
पास प्रभु चित्त घर रे। आत्म लक्ष्मी ते पद पामी,
आनंद हर्ष तुं वर रे ॥ श्री० [८]
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