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[ २] श्रीविजयानंदसरि (आत्मारामजी) म० रचित
श्रीशद्वेश्वरपार्श्वनाथस्तवन ( राग : वीतरागको देख दरश:--ए देशी ) श्रीशंखेश्वर देख दरश,
कुमति मेरी मीट गई रे। ज्ञानी बचन पूजा रस छायो,
मास कष्ट भविजन मन भायो । बुं जिन मूरति रंग देख,
दुर्गति मेरी खुट गई रे ॥ श्री० (१) निर्विकार वामा संग त्यागी,
जप माला नहि नाथ नीरागी। शस्त्र नहि कर द्वेष मीटे,
भ्रमता सब छूट गई रे ॥ श्री० (२) आनंद मंगल जगमें चार,
मंगल प्रथम ही जग किरतार। श्रीवामा सुत पास तुंही,
अघभ्रांति मीट गई रे ॥ श्री० (३) श्याम मेघ सम पासजी निरखी,
आतमआनंद शिखी जिम हरखी। करत शब्द मुख पास तुंही,
एही रटना रट गई रे ॥ श्री० (४)
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