Book Title: Sankheshwar Stavanavali
Author(s): Vishalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 94
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.oAcharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७७ [ २] श्रीविजयानंदसरि (आत्मारामजी) म० रचित श्रीशद्वेश्वरपार्श्वनाथस्तवन ( राग : वीतरागको देख दरश:--ए देशी ) श्रीशंखेश्वर देख दरश, कुमति मेरी मीट गई रे। ज्ञानी बचन पूजा रस छायो, मास कष्ट भविजन मन भायो । बुं जिन मूरति रंग देख, दुर्गति मेरी खुट गई रे ॥ श्री० (१) निर्विकार वामा संग त्यागी, जप माला नहि नाथ नीरागी। शस्त्र नहि कर द्वेष मीटे, भ्रमता सब छूट गई रे ॥ श्री० (२) आनंद मंगल जगमें चार, मंगल प्रथम ही जग किरतार। श्रीवामा सुत पास तुंही, अघभ्रांति मीट गई रे ॥ श्री० (३) श्याम मेघ सम पासजी निरखी, आतमआनंद शिखी जिम हरखी। करत शब्द मुख पास तुंही, एही रटना रट गई रे ॥ श्री० (४) For Private And Personal Use Only

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