Book Title: Sankheshwar Stavanavali
Author(s): Vishalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala
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तुमज सुनेगा दिलकी बातां रे । तारोगा नाथ खरोर ॥ पास० [४] तुमज आतम आनंद दाता रे । ध्यान्ता हुँ तुमरा किसोर ॥ पास० [५]
[५१] श्रीविजयानंदरि(आत्मारामजी) म० रचित
श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथस्तवन
( राग-कलिंगडानी ठुमरी ) तोरी छबी मनोहारी शंखेश धाम, नीलांबुजवत तोरे नयन श्याम, तोरी छवो० [आंकणी] चंद्र जू बदन जगत तुम भाले । कलमल पंक पखारे नाम ॥ तोरी० [१] नोल वरण तनु भवि मन मोहे । सोहे त्रिभुवन करुणाधाम ॥ तोरी० [२] पारस पारससम करे जनको ।। हाटक करनन तुमरो काम ॥ तोरी० [३] अजर अखंडित मंडित निज गुन । ईश निरंजन पूरे काम ॥ तोरी० [४] अनघ अमल अज चिघनराशि । आनंदघन प्रभु आतमराम ॥ तोरी० [५]
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