Book Title: Sankheshwar Stavanavali
Author(s): Vishalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.oAcharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
૭૪
[ ४८ ] श्री चिदानंदजी विरचित श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथस्तवन
( चाल - नथणीसे लळकारुंगी )
श्रीशंखेसर पास जिणंदके,
चरण कमल चित्त लागी । सुणजो रे सज्जन नित्य ध्याउंगी [ आंकणी ] एहवा पण दृढ धारी हियामें
अन्य द्वार नहि जाउंगी | सुण० ॥ [ १ ] सुंदर सुरंग सलूणी मूरत,
निरख नयन सुख पाउंगी || सुण० || [२] चम्पा चमेली अरु मोगरा,
अंगीया अंग रचाउंगी || सुण• ॥ [ ३ ] शीलादिक शणगार सजी नित्य,
नाटक प्रभुकुं दिखाउंगी || सण० ॥ [ ४ ] चिदानंद प्रभु प्राण जीवनकुं,
मोतीयन थाल वधाउंगी ॥ गुण० ॥ [ ५ ]
[ ४९ ]
श्री विजयानंदमूरि (आत्मारामजी ) म० रचित श्रीशङ्खेश्वरपार्श्वजिनस्तवन
मोरी बैयां तो पकर शंखेश श्याम, मोरी । करुणारस भरे तोरे नयन श्याम, मोरी बैयां० (१)
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118