Book Title: Sankheshwar Stavanavali
Author(s): Vishalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 89
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.oAcharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [४६] श्रीरंगविजयजी विरचित श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथस्तान श्रीशंखेश्वर पास जिनेसर अरजी सुनोजी, कार मेरबांनी हां रे मेरी अरज (आंकणी) तारक बिरुद सुनी में आयो, तुम चरणे सरनां जानी ॥ श्री०॥ [१] सोल सहस मुनि आदि जुगति, तारें तुम अमृत बांला । उनकुं आतिमऋद्धि भर सिद्धे, पाए परम प्रभुजी दानी ॥ श्री०॥ [२] पन्नग पावक जलतो उगार्यों, ज्ञान दिसा तुम पहेंचानी । उनकुं दरस सरस भयो तेरो, सुरपति पदवी छहेरानी ॥ श्रो० ॥ [३] में आयो एह कीरत सुंनके, . विनति एक सुनिये ज्ञानी । भवोभव तुम चरनांकी सेवा, साहिब दीजें दिल मानी ॥ श्री. [४] अश्वसेन वामाजीको नंदन, वंदत जगके सुलतानी । अब तो लेहेरमेहर मोय कीजें, रंग सदा शिव सुख दानी ॥ श्री.॥ [२] For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118