Book Title: Sankheshwar Stavanavali
Author(s): Vishalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala
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[४६] श्रीरंगविजयजी विरचित
श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथस्तान श्रीशंखेश्वर पास जिनेसर अरजी सुनोजी, कार मेरबांनी हां रे मेरी अरज (आंकणी) तारक बिरुद सुनी में आयो,
तुम चरणे सरनां जानी ॥ श्री०॥ [१] सोल सहस मुनि आदि जुगति,
तारें तुम अमृत बांला । उनकुं आतिमऋद्धि भर सिद्धे,
पाए परम प्रभुजी दानी ॥ श्री०॥ [२] पन्नग पावक जलतो उगार्यों,
ज्ञान दिसा तुम पहेंचानी । उनकुं दरस सरस भयो तेरो,
सुरपति पदवी छहेरानी ॥ श्रो० ॥ [३] में आयो एह कीरत सुंनके,
. विनति एक सुनिये ज्ञानी । भवोभव तुम चरनांकी सेवा,
साहिब दीजें दिल मानी ॥ श्री. [४] अश्वसेन वामाजीको नंदन,
वंदत जगके सुलतानी । अब तो लेहेरमेहर मोय कीजें,
रंग सदा शिव सुख दानी ॥ श्री.॥ [२]
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