Book Title: Sankheshwar Stavanavali
Author(s): Vishalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala
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७०
सेव्यो निज जांनी नावपे तारत,
तारक बिरुद ए आप वरैया । प्री०
सकल जगत को जल्द जीवावत,
दाम म मांगत दान वभईया || प्री० [४] भानु उद्योत करे महिमावत,
किते जन देत हैं रोक रूपैया । प्री० इसे न्याय केंते ज्यो कहावत,
आप तरे अब मोहि तरैया ॥ विजयजिनेन्द्र सारे संग उमंगे,
श्रीशंखेश्वर सार करैयां । चिर रवि हुय मेरु जुं प्रतपो, ठकुराई थिर थपैयां ॥ त्रिहु जगमां हि जिन तेरो ही महिमा, जय जय बोलत जगजनैयां ।
माणिक कहें अब इतनो ही मांगु,
दीज चरन सेवा फल पईयां [ ४५ ] शंखेसरपासस्तवन
" वाडी मांहे वड घणा पेंपल गुहीर गंभीर " - ए देशी )
थे छो म्हांरा ठाकुरजी.
म्हें चाकर, महाराज ।
महिर करो म्हां ऊपरि जा.
प्री० [५]
प्रो०
प्री० [६]
प्री०
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प्री० [७]
कोई अरज करां छां आज ॥

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