Book Title: Sankheshwar Stavanavali
Author(s): Vishalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 87
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.oAcharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७० सेव्यो निज जांनी नावपे तारत, तारक बिरुद ए आप वरैया । प्री० सकल जगत को जल्द जीवावत, दाम म मांगत दान वभईया || प्री० [४] भानु उद्योत करे महिमावत, किते जन देत हैं रोक रूपैया । प्री० इसे न्याय केंते ज्यो कहावत, आप तरे अब मोहि तरैया ॥ विजयजिनेन्द्र सारे संग उमंगे, श्रीशंखेश्वर सार करैयां । चिर रवि हुय मेरु जुं प्रतपो, ठकुराई थिर थपैयां ॥ त्रिहु जगमां हि जिन तेरो ही महिमा, जय जय बोलत जगजनैयां । माणिक कहें अब इतनो ही मांगु, दीज चरन सेवा फल पईयां [ ४५ ] शंखेसरपासस्तवन " वाडी मांहे वड घणा पेंपल गुहीर गंभीर " - ए देशी ) थे छो म्हांरा ठाकुरजी. म्हें चाकर, महाराज । महिर करो म्हां ऊपरि जा. प्री० [५] प्रो० प्री० [६] प्री० For Private And Personal Use Only प्री० [७] कोई अरज करां छां आज ॥

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