Book Title: Sankheshwar Stavanavali
Author(s): Vishalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.oAcharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सजननयन सुधारसअंजन,
दुरजन रवि भरनी; तुज मूरति निरखे सो पावे,
सुख जस लील धनी ॥ अब०
(६)
[४४] श्रीमाणिक्यविजयजी विरचित
श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथस्तवन ( नर मोहीडा तोसें अबहि रे बोलू रे ..
चलजा रे जीवडा इनाई दे कानीया. नर मो हेडा-ए देशी) प्रीत बनी निभाईय बनेंगी,
सुनो अब मेरे संखेश्वर सांईयां । प्री० और ठोर बहु प्रीत करत हैं,
भक्तकी रीत कठिन करीईया ।। प्रो० [१] बालक गोद पर्यो बहु गुंदे,
उर थल लायके ले तबलीया । प्रो० गौचा चरत बन बन पछुवायें,
. तहि पयपान हि पोस धरीया ॥ प्री० [२] जल चरती चलति लो जावत,
निज तनु तनुरथपाल तह हईयां । प्रो० पनीहारी कुभ पर छपालत,
चाले क्टकति तारी दैयां ॥ प्री० [३]
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118