Book Title: Sankheshwar Stavanavali
Author(s): Vishalvijay
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 92
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.oAcharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૭૫ तुम तो तार फणींद जग साचे, तुम तो०। हमकु विसार न करुणाधाम, मोरी बैयां० (२) जादवपति अरति ते कापी, जादवः । धारित जगत शंखेश नाम, मोरी वैयां० (३) हम तो काल पंचम वश आये, हम तो० । तुमेरो ही शरण जिनेश नाम, मोरी बैयां० (४) संयम तप करणे शुद्ध शक्ति, संयम० । न धरुं कर्म झकोर पाम, मोरी बैयां० (५) मानंद रस पूरण सुख देखी, आनंद। आनंद पूरण आत्माराम मोरी बैयां० [५०] श्रीविजयानंदमूरि(आत्मारामजी) म० रचित श्रीशङ्केश्वरपार्श्वजिनस्तवन ( राग-कलींगडा ) पास प्रभु रे तुम हम सीर के मोर, पास प्रभु० [ए आंकणी] जो कोई सिमरे शंखेश्वर प्रभु रे । डारेगा पाप नीचोर ॥ पास० [१] तुं मनमोहन चिद्घन स्वामी रे । साहिब चंद चकोर ॥ पास० [२] तुं मन विकसे भविजन केरा रे । फारेगा कर्म हिंडोर ॥ पास० [३] For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118