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तुम तो तार फणींद जग साचे, तुम तो०। हमकु विसार न करुणाधाम, मोरी बैयां० (२) जादवपति अरति ते कापी, जादवः । धारित जगत शंखेश नाम, मोरी वैयां० (३) हम तो काल पंचम वश आये, हम तो० । तुमेरो ही शरण जिनेश नाम, मोरी बैयां० (४) संयम तप करणे शुद्ध शक्ति, संयम० । न धरुं कर्म झकोर पाम, मोरी बैयां० (५) मानंद रस पूरण सुख देखी, आनंद। आनंद पूरण आत्माराम
मोरी बैयां०
[५०] श्रीविजयानंदमूरि(आत्मारामजी) म० रचित
श्रीशङ्केश्वरपार्श्वजिनस्तवन
( राग-कलींगडा ) पास प्रभु रे तुम हम सीर के मोर,
पास प्रभु० [ए आंकणी] जो कोई सिमरे शंखेश्वर प्रभु रे । डारेगा पाप नीचोर ॥ पास० [१] तुं मनमोहन चिद्घन स्वामी रे । साहिब चंद चकोर ॥ पास० [२] तुं मन विकसे भविजन केरा रे । फारेगा कर्म हिंडोर ॥ पास० [३]
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