Book Title: Sanghpati Rupji Vansh Prashasti Author(s): Vinaysagar Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रधान-सम्पादकीय प्रस्तुत ग्रन्थ श्रीवल्लभोपाध्याय रचित सत्रहवीं शताब्दी का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है जिसको श्रीविनयसागर ने हमारे प्रतिष्ठान के अन्थों से ढूंढ निकाला। इस ग्रन्थ में मध्ययुग के एक बहुत बड़े श्रेष्ठि-वश का परिचय दिया गया है। उस युग में इस वंश के प्रमुख सदस्य संघपति सोमजी शिवाजी थे, जिन्होंने जैनधर्म के लिये बहुत से ऐतिहासिक महत्व के काम किये, अत: श्वेताम्बर जनसमुदाय में इनका नाम आज भी बड़े आदर के साथ लिया जाता है। प्राचार्य जिनचन्द्रसूरि, जो सम्राट अकबर के द्वारा युगप्रधान पद से अलंकृत किये गये थे, उनके ये प्रमुख भक्त थे। अतः स्वभावत: इस ग्रन्थ का बहुत बड़ा ऐतिहासिक महत्त्व है। इस ग्रन्थ में सोमजी शिवाजी एवं उनके पूर्वजों द्वारा निर्मित जैनमन्दिरों और ज्ञानभण्डारों की स्थापना का उल्लेख है, उनमें से कुछ का पता नहीं चल रहा है अतः अहमदावाद-निवासियों और विशेष कर उनके वंशजों के लिये उनकी गवेषणा करना प्रावश्यक हो जाता है । सम्पादक महोदय ने इसके ढूढ़ने और सम्पादन करने में जो श्रम किया है उसके लिये वे साधुवाद के पात्र हैं। चंत्र शुक्ला ८, वि.सं. २०२६, । जोधपूर . -फतहसिंह For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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