Book Title: Sanghpati Rupji Vansh Prashasti Author(s): Vinaysagar Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संघपति रूपजी-वंश प्रशस्ति रचना-समय संघपति सोमजो ने सिद्धाचलतीर्थ पर खरतरवसही (चौमुखजो को ढूंक) का निर्माणकार्य प्रारंभ करवाया था। मीराते अहमदी के अनुसार इस मदिर के निर्माणकार्य में ५८ लाख रुपये खर्च हुए थे। कहा जाता है कि इस कार्य में ८४०००) रुपयों की तो केवल रस्सी-डोरियां ही लगी थीं। किन्तु दुर्भाग्यवश मदिर की प्रतिष्ठा कराने के पूर्व ही संघपति सोमजी का स्वर्गवास हो गया । ऐसी अवस्था में सोमजी के पुत्र संघपति रूपजी ने सं० १६७५ में खरतरगणनायक श्रीजिन राजसूरि के कर-कमलों से इस खरतरवसही को प्रतिष्ठा का कार्य बड़े महोत्सव के साथ सम्पन्न करवाया। दूसरी बात, खरतरगच्छीय पट्टावलियों के अनुसार, इस प्रतिष्ठा-महोत्सव के अतिरिक्त संघपति रूपजी के अन्य विशिष्ट एव महत्त्वपूर्ण कार्यों का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं है । अत: इसको रचना का समय प्रतिष्ठा-महोत्सव का समय संवत् १६७५ के पश्चात् का ही माना जा सकता है। ग्रन्थसार इस काव्य के अनुसार संघपति रूपजी का वंशवृक्ष इस प्रकार बनता है : प्राग्वाटवंशीय श्रेष्ठिदेवराज (पत्नी- रूडी) श्रे. गोपाल (पत्नी-राजू) श्रे. राजा (पत्नो-रत्नदेवी) श्रे. साइया (पत्नी-नाकू) श्रे. योगी (पत्नी २, जसमादवो और नानी काकी) श्रे. नाथ (पत्नी-न रंगदेवी) । श्रे. सूरजो (पत्नो-सुषमादेवी) श्रे. सोमजी (माता जसमादे) श्रे. शिवा (माता जसमादे) श्रे. इन्द्र जो श्रे. रूपजी काव्य में वंशावली के अतिरिक्त कवि ने जिन-जिन विशिष्ट बातों एवं कार्यों का इसमें उल्लेख किया है, वे क्रमश: इस प्रकार है For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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