Book Title: Sanghpati Rupji Vansh Prashasti
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संघपति रूपजी-वंश-प्रशस्ति १०. इस प्रकार संघपति सोमजी ने आठ नये मंदिरों का निर्माण करवाया और सिद्धांत, टीका आदि सर्वशास्त्रों को प्रतिलिपियां करवा कर अहमदाबाद में ही ज्ञानभंडार स्थापित किया एवं खरतरगच्छ की सम्पूर्ण रूप से सर्वत्र उन्नति की। सं० सोमजी के सम्बन्ध में अन्य उल्लेख संघपति सोमजी के सबंध में अन्य ग्रंथों में जो उल्लेखनीय विशेष बातें प्राप्त होतो हैं वे निम्नलिखित हैं :-- १. शीलविजयकृत तीर्थमाला के अनुसार संघपति सोमजी शिवा न केवल प्राग्वाटवंशीय ही हैं अपितु विश्वप्रसिद्ध नेमिनाथमंदिर, पाबू के निर्माता महामात्य वस्तुपाल तेजपाल के वंशज हैं: वस्तुपाल मंत्रीश्वर-वंश, शिवा सोमजी कुल-अवतंश । शत्रुजय उपरि चौमुख कियउ, मानव-भव लाहो तिण लियउ ।। २. क्षमाकल्याणोपाध्यायकृत पट्टावली के अनुसार सोम और शिवा प्रारंभ में गरीब थे और चिभड़े का व्यापार करते थे। प्राचार्य जिनचन्द्रसूरि के चमत्कार के प्रभाव से ये धनाढ्य हो गये। ३. वाचक रत्ननिधानकृत चैत्यपरिपाटी-स्तवन के अनुसार सं० सोमजी का संघ सं० १६४४ चैत्र कृष्णा ४ को शत्रुजय पर पहुचा था: संवत सोलह सइ चिम्मालइ, बरसि सवि सुखकार । चैत वदी चउथी दिनइ, बुधवल्लभ बुधवार ॥१०॥ संघपति योगी सोमजी, मन धरि हरख तुरंग । गच्छपति श्रीजिनचन्द्रनइं, यात्रा करावी रंग ॥११॥ सुविहित खरतर संघनइ, श्री प्रादिदेव प्रसन्न । वाचनाचारिज इम' भणइ, रत्ननिधान वचन्न ॥१२॥ ४. महोपाध्याय समय सुन्दर-कृत कल्पसूत्रटीका 'कल्पलता' (र०सं० १६८५) को प्रशस्ति में लिखा है कि जगद्विश्रुत सोमजी और शिवा ने राणकपुर, गिरिनार, प्राबू, गौडी पार्श्वनाथ और शवञ्जय के बड़े-बड़े विशाल संघ निकालकर तीर्थयात्रायें कीं और प्रतिनगर में स्वगच्छानुयायियों को २ रुक्म (सिक्का) को प्रभावना की: For Private And Personal Use Only

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