Book Title: Sanghpati Rupji Vansh Prashasti Author(s): Vinaysagar Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संघपति रूपजी वंश - प्रशस्ति www.kobatirth.org 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११. निघण्टुशेषनाममाला टीका' १२. सिद्ध हेमशब्दानुशासन टीका * १३. दुर्गपद प्रबोधवृत्ति २. सं. १६६१ जोधपुर १४. सारस्वतप्रयोग निर्णय * १५. 'केशा:' पदव्याख्या ' १६. चतुर्दशगुणस्थान - स्वाध्याय प्रस्तुत प्रशस्ति-काव्य के अतिरिक्त श्रीवल्लभ वाचक के स्वयं के हस्तलेखों की दो प्रतियाँ मेरे अवलोकन में और भाई हैं जिनमें से एक तो बाणभट्टकृत ' चण्डीशतक' की महाराणा कुम्भकर्णप्रणीत टीका की सं० १६५५ नागोर में लिखित प्रति जो राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर में १७३७६ ग्रन्थांक पर प्राप्त है और दूसरी प्रति श्रीसुन्दररचित 'चतुर्विंशतिजिनस्तुतिः' की प्रति मेरे निजी संग्रह में प्राप्त है । ३ काव्यनाम प्रस्तुत काव्य पूर्ण होने से इसका कवि ने क्या नाम रखा है, निर्णय नहीं कर सकते । काव्य के प्रारंभ में कवि 'श्रीसंघाधिपरूपजीविजयता' ( पद्य ३) तथा 'भुवि श्रावकाधीश्वरो रूपजो: स:' ( पद्य ४ ) का उल्लेख कर, पद्य पांचवें में रूपजी के पूर्वजों का वर्णन करने का संकेत करता है। इससे स्पष्ट है कि कवि संघपति रूपजी की प्रशंसा में यह प्रशस्ति-काव्य लिखना चाहता है, परन्तु काव्य के प्राप्तांश में केवल रूपजी के पिता एवं चाचा संघपति सोमजी भौर शिवाजी के कतिपय सुकृत कार्यों का ही वर्णन प्राप्त है। रूपजी का जन्म और विशिष्ट कृत्यों का उल्लेख भी इसमें नहीं आ पाया है । ऐसी अवस्था में मैंने इसका 'संघपति रूपजी वंश- प्रशस्तिनाम रखना ही समुचित समझा है । १. अभिधानचिन्तामणिनाममाला 'सारोद्धार' टोका में उल्लेखमात्र प्राप्त है। २. विजयधर्म लक्ष्मीज्ञानमन्दिर, श्रागरा में प्राप्त है । ३. श्री श्रमीसोमजनग्रंथमाला, बम्बई से प्रकाशित । ४. भावहर्षी खरतरगच्छ ज्ञान भंडार, बालोतरा में कुछ वर्षों पूर्व यह प्रति प्राप्त थी किन्तु दुःख है कि वह ज्ञान भण्डार बिक चुका है । ५. महिमा भक्ति जैन ज्ञान भंडार, बोकानेर ग्रं. १८९० पर प्राप्त है । For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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