Book Title: Sanghpati Rupji Vansh Prashasti
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूमिका प्रति-परिचय यह प्रति राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर के हस्तलिखित ग्रन्थसङ्गहालय में प्राप्त है । इस प्रति का परिचय इस प्रकार है: ग्रन्थाङ्क-१९२५० नाम-संघपति रूपजी-वंश-प्रशस्तिः कर्ता-श्री श्रीवल्लभोपाध्याय प्राधार-कागज लिपि-देवनागरी साइज-२६४११ सी. एम. पत्र-८ पंक्ति-१६ अक्षर-४३ भाषा-संस्कृत समय-वि. सं १६७५ से १६६० का मध्यकाल विशेष-काव्य अपूर्ण है। कर्ता श्रीवल्लभ द्वारा स्वयं-लिखित प्रति होने से शुद्धतम, सटिप्पण, टीका-सहित और कतिपय पाठान्तरों से अलंकृत है। अभी तक इसको दूसरी और पूर्ण प्रति कहीं भी प्राप्त नहीं कर्ता इस प्रशस्ति-काव्य के प्रणेता श्री श्रीवल्लभोपाध्याय (श्रीश्रीवल्लभवाचकः, पद्य ५) जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छीय परम्परा में श्री ज्ञानविमलोपाध्याय के शिष्य थे। इनका समय वि. सं. १६२० से लेकर १६६० तक का है। वाचक श्रीवल्लभ प्रतिभा-सम्पन्न कवि, सफल टीकाकार, स्वसिद्धान्त और परसिद्धान्त के मर्मज्ञ-वेत्ता, व्याकरण, कोष और लक्षणशास्त्र के विशिष्ट विद्वान् एवं वादो For Private And Personal Use Only

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